चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास-Chittorgarh Fort History in Hindi

चित्तौड़/चित्तौड़गढ़ दुर्ग/Chitod Durg/kila:-

  • निर्माता :-चित्रांगद मौर्य (मौर्य राजा) (प्रसिद्ध ग्रंथ वीर विनोद के अनुसार) (इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद ने सातवीं शताब्दी में करवाया था) ||
  • और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। बाद में यह चित्तौड़ कहा जाने लगा |
  • चित्तौड़गढ का किला राज्य के सबसे प्राचीन और प्रमुख किलों में से एक है | सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट (आवासीय दुर्ग) है
  • चितौड़ में गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम पर स्थित दुर्ग।
  • 700 एकड़ में फैले चित्तौड़गढ़ के किले को भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है।
chittorgarh fort durg चित्तौड़-दुर्ग
चित्तौड़/चित्तौड़गढ़ दुर्ग
  • 616 मीटर /1850 feet ऊँचे अरावली पर्वत श्रृखला के मेसा पठार पर निर्मित दुर्ग। (गिरि दुर्ग)
  • यह दुर्ग राजस्थान के किलों में क्षेत्रफल की दृष्टि सबसे बड़ा माना जाता है।
  • यह मौर्य कालिन दुर्ग राज्य का प्रथम या प्राचीनतम दुर्ग माना जाता है।
  • यह दुर्ग ‘धान्वन दुर्ग’ को छोड़कर शेष सभी 8 श्रेणियों में रखा जा सकता है।
  • आकार :-व्हेल मछली के समान।
  • उपनाम :-राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर, चित्रकूट, दुर्गा धिराज
  • इस दुर्ग की परिधि लगभग 13 किलोमीटर हैं।
  • मेवाड़ के गुहिलवंशीय शासक बप्पा रावल ने मौर्यवंश के अंतिम शासक शासक मानमोरी को परास्त कर 734 ई. में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
  • फिर मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया।
  • सन् 1133 में जयसिंह (सिद्धराज)(गुजरात के सोलंकी राजा) ने यशोवर्मन को हराकर परमारों से मालवा छीन लिया, जिसके कारण चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी सोलंकियों के अधिकार में आ गया।
  • जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल के भतीजे अजयपाल को परास्त कर मेवाड़ के राजा सामंत सिंह ने सन् 1174 के आसपास पुनः गुहिलवंशियों का आधिपत्य स्थापित कर दिया।

इस दुर्ग में अदबद् जी का मंदिर, रानी पद्मिनी का महल, गोरा-बादल महल, कालिका माता मंदिर, सुरज कुण्ड,समद्धिश्वर मंदिर, जयमल-फत्ता (पता) हवेलियां, तुलजा माता मंदिर, कुम्भश्याम मंदिर, सतबीश देवरी जैन मदिंर, श्रृंगार चवंरी जनै मन्दिर एव नवलखा भण्डार स्थित है।

  • दुर्ग के भीतर विजय स्तम्भ (9 मंजिला) भव्य इमारत है। इसका निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा 1440 ई. से 1448ई. में मालवा विजय के उपलक्ष्य में करवाया। विजय स्तम्भ को ‘भारतीय मूर्ति कला का विश्वकोश’ कहा जाता है।
क्र. सं.दुर्गआक्रमणकारीसमयतत्कालीन शासक
1.चित्तौड़ दुर्ग(i) अलाउद्दीन खिलजी
(ii) बहादुरशाह
(iii)अकबर
(i)1303 ई.
(ii)1534 ई
(iii)1568 ई.
(i)रावल रतनसिहं
(ii)विक्रमादि त्य
(iii)उदयसिहं
चित्तौड़ दुर्ग पर आक्रमण

तीन साके :-

पहला साका :-1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय।
तत्कालीन शासक :-राणा रतनसि हं ।
जौहर :-पद्मिनी के नेतृत्व में।
गौरा-बादल का सम्बन्ध चित्तौड़ के पहले साके से है।
इस लड़ाई में अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई और उसने अपने पुत्र खिज्र खाँ को यह राज्य सौंप दिया।इस दुर्ग को जीतकर अलाउद्दीन खिलजी ने इसका नाम खिज्राबाद रखा।
खिज्र खाँ ने वापसी पर चित्तौड़ का राजकाज कान्हादेव के भाई मालदेव को सौंप दिया।
बाप्पा रावल के वंशज राजा हमीर ने पुनः मालदेव से यह किला हस्तगत किया
चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल शहीद हुए।
रानी पद्मिनी सिहंल द्वीप के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री थी।

दूसरा साका :-1534 ई. में बहादुरशाह (गुजरात सुल्तान) के आक्रमण के समय
तत्कालीन शासक :-विक्रमादि त्य
जौहर :-कर्मावती के नेतृत्व में।
केसरिया :-रावत बाघसिहं के नेतत्ृव में।
बहादुरशाह ने अपने सेनापति रुमीखाँ को इस अभियान का नेतृत्व सौंपा था।
इस युद्ध में रानी कर्मावती ने मुगल शासक हुमायूँ को राखी भेजकर मदद माँगी थी।

तीसरा साका :-1568 ई. में अकबर के आक्रमण के समय।
1568 ई. तत्कालीन शासक :-राणा उदयसिहं
इस युद्ध में जयमल व फत्ता (पता) ने अदम्य वीरता का परिचय दिया।
तीसरे शाके के बाद ही महाराणा उदयसिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ से हटाकर अरावली के मध्य पिछोला झील के पास स्थापित कर दी, जो आज उदयपुर के नाम से जाना जाता है।

इस दुर्ग में 7 प्रवेश द्वार हैं :-

पाडन पोल (मुख्य व पहला प्रवेश द्वार), भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल,रामपोल।

पाडन पोल :-

यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहाँ तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।

भैरव पोल (भैरों पोल) :-

पाडन पोल से थोड़ा उत्तर की तरफ चलने पर दूसरा दरवाजा आता है, जिसे भैरव पोल के रूप में जाना जाता है। इसका नाम देसूरी के सोलंकी भैरोंदास के नाम पर रखा गया है, जो सन् 1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से युद्ध में मारे गये थे।

हनुमान पोल :-

दुर्ग के तृतीय प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास ही हनुमान जी का मंदिर है।

गणेश पोल :-

हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है।

जोड़ला पोल :-

यह दुर्ग का पाँचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।

लक्ष्मण पोल :-

दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।

राम पोल :-

लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं।

इसके निकट ही महाराणाओं के पूर्वज माने जाने वाले सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्र जी का मंदिर है। राम पोल दरवाजा किला का सातवां तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है।

NOTE:- नवलखा बुर्ज (बनवीर द्वारा निर्मित लघु दुर्ग) इसी किले में है।

इस दुर्ग में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ (7 मंजिला) का निर्माण बघेरवाला जैन जीजा द्वारा 10वीं – 11वीं सदी में करवाया गया था। (भगवान आदिनाथ का स्मारक)।

राज्य का सबसे बड़ा लिविगं फोर्ट।

दुर्ग में जलापूर्ति के स्रोत :-रत्नेश्वर तालाब, कुम्भसागर, गोमुख झरना, हाथीकुण्ड, भीमलत तालाब, झालीबाव तालाब।

दुर्ग के भीतर स्थित फतह प्रकाश महल को संग्रहालय बना दि या गया।

कल्ला राठौड़ की छतरी (4 खम्भों की छतरी) इसी दुर्ग में है।

लाखोटा की बारी :-चित्तौड़ दुर्ग की उत्तरी खिड़की।

कीर्ति स्तम्भ(विजय स्तम्भ)

महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूदशाह ख़िलजी को युद्ध में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में इष्टदेव विष्णु के निमित्त यह कीर्ति स्तम्भ बनवाया था।

यह स्तम्भ 9 मंजिला तथा 120 फीट ऊंचा है।

इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित है।

इसे भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष अथवा अजायबघर भी कहते हैं

दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ के वास्तुकार जैता, नापा, पोमा एव पूंजा थे।

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कीर्ति स्तम्भ(विजय स्तम्भ)

जैन कीर्ति स्तम्भ

जैन कीर्ति स्तम्भ 75 फीट ऊँचा, सात मंजिलों वाला एक स्तम्भ बना है, जिसका निर्माण चौदहवीं शताब्दी में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के बघेरवाल महाजन सानांय के पुत्र जीजा ने करवाया था। यह स्तम्भ नीचे से 30 फुट तथा ऊपरी हिस्से पर 15 फुट चौड़ा है तथा ऊपर की ओर जाने के लिए तंग नाल बनी हुई हैं।

जैन कीर्ति स्तम्भ वास्तव में आदिनाथ का स्मारक है

महावीर स्वामी का मंदिर

जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है।

नीलकंठ महादेव का मंदिर(समाधीश्‍वर/साममिद्धेश्वर मंदिर)

यह भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण11वीं शताब्‍दी के प्रारंभ में भोज परमार द्वारा करवाया था। बाद में मोकल ने 1428 ई. में इसका जीर्णोद्धार किया। मंदिर में एक गर्भगृह, एक अन्‍तराल तथा एक मुख्‍य मंडप है जिसके तीन ओर अर्थात् उत्‍तरी, पश्‍चिमी तथा दक्षिणी ओर मुख मंडप (प्रवेश दालान) हैं। मंदिर में भगवान शिव की त्रिमुखी विशाल मूर्ति स्‍थापित है।

कलिका माता का मन्दिर

राजा मानभंग द्वारा 9वीं शताब्‍दी में निर्मित यह मन्दिर मूल रूप से सूर्य को समर्पित है,

चित्तौड़ी बूर्ज व मोहर मगरी

दुर्ग का अंतिम दक्षिणी बूर्ज चित्तौड़ी बूर्ज कहलाता है और इस बूर्ज के 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है। यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि सन् 1567 ई. में अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊँचा उठवाया, ताकि किले पर आक्रमण कर सके। प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक-एक मोहर दी गई थी। अतः इसे मोहर मगरी कहा जाता है।

कुम्भ श्याम मंदिर

मीरा मंदिर

सात बीस देवरी जैन मंदिर

प्रमुख दर्शनिय स्थल :- चित्रांग मोरी तालाब,पदमनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय,जयमल व कल्ला की छतरियाँ तथा कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण -शीर्ण अवस्था) है।

•जैन कीर्ति स्तम्भ के लेखक कवि अत्री एवं महेश थे। इसका निर्माण 13वीं सदी में जैन सम्प्रदाय के श्रावक
‘जीजाक’ ने करवाया था।
•दुर्ग का सबसे प्राचीन दरवाजा :- सूरजपोल।
•रावत बाघसिहं का स्मारक इसी दुर्ग में है।
•विजय स्तम्भ को कर्नल जेम्स टॉड ने ‘रोम के टार्जन’ की उपमा दी।

•यह राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी द्वार तथा मालवा का प्रवेश द्वार है ।

चित्तौड़ दुर्ग की तुलना बिट्रीश पुरातत्व दुत सर हूयूज केशर ने एक भीमकाय जहाज से की थी उन्होंने लिखा हैं-

“चित्तौड़ के इस सूनसान किलें मे विचरण करते समय मुझे ऐसा लगा मानों मे किसी भीमकाय जहाज की छत पर चल रहा हूँ”

दुर्ग के सम्बन्ध में प्रचलित कहावत :-
गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया।

NOTE:- एक किंवदन्मत के अनुसार पाण्डवों के दूसरे भाई भीम ने इसे करीब 5000 वर्ष पूर्व बनवाया था। इस संबंध में प्रचलित कहानी यह है कि एक बार भीम जब संपत्ति की खोज में निकला तो उसे रास्ते में एक योगी निर्भयनाथ व एक यति(एक पौराणिक प्राणी) कुकड़ेश्वर से भेंट होती है। भीम ने योगी से पारस पत्थर मांगा, जिसे योगी इस शर्त पर देने को राजी हुआ कि वह इस पहाड़ी स्थान पर रातों-रात एक दुर्ग का निर्माण करवा दे। भीम ने अपने शौर्य और देवरुप भाइयों की सहायता से यह कार्य करीब-करीब समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ दक्षिणी हिस्से का थोड़ा-सा कार्य शेष था। योगी के ऋदय में कपट ने स्थान ले लिया और उसने यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा, जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी, जिससे वहाँ एक बड़ा सा गड्ढ़ा बन गया, जिसे लोग भी-लत तालाब के नाम से जानते है। वह स्थान जहाँ भीम के घुटने ने विश्राम किया, भीम-घोड़ी कहलाता है। जिस तालाब पर यति ने मुर्गे की बाँग की थी, वह कुकड़ेश्वर कहलाता है।

Chittorgarh kila story

इस पोस्ट में पुरे चित्तौरगढ़ किले की विस्तृत जानकारी है

Chittorgarh durg/fort/kila opening timing

9 am to 6 pm

chittorgarh fort area in km/acre

2.8 km2/700 एकड़ में फैले चित्तौड़गढ़ के किले को भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है।

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