इस लेख में हम राजस्थान के प्रमुख दुर्ग/किले(Rajasthan ke Durg/Kile) के बारे में बात करेंगे। हमने इस लेख में लगभग पुरे राजस्थान में दुर्ग स्थापत्य (FORTS/CASTLES OF RAJASTHAN LIST-NOTES) अध्याय का विस्तृत विवरण किया हे।
- राजस्थान में महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के पश्चात सर्वाधिक दुर्गों का निर्माण हुआ है।
- राजस्थान में दुर्गों के स्थापना का विकास का प्रथम आधार कालीबंगा की खुदाई में मिलता है।
राजस्थान में दुर्गों की विशेषताएँ(ADVANTAGES AND SPECIALITY OF FORTS OF RAJASTHAN) :-
1.सुदृढ़ प्राचीरें
2.अभेद्य बुर्जे
3. परकोटे
4.दुर्ग के चारों तरफ गहरी खाई
5.दुर्ग के भीतर जलाशय
6.शस्त्रागार
7.मंदिर निर्माण
8.अन्न भण्डार की स्थापना
9.सुरंग प्रणाली
10.गुप्त प्रवेश द्वार।
कौटिल्य के अनुसार दुर्ग की 4 श्रेणियाँ || FOUR TYPES OF FORTS AND CASTLES
1.औदुक दुर्ग
2.पर्वत दुर्ग
3.धान्वन दुर्ग
4.वन दुर्ग
शुक्र नीति के अनुसार राज्य के 7 अंग
1.राजा
2.अमात्य (मंत्री)
3.सुहृत
4.कोष
5.राष्ट्र
6.दुर्ग
7.सेना
शुक्र नीति के अनुसार दुर्ग के 9 प्रकार(FORTS/CASTLES OF RAJASTHAN :-
•राज्य को मानव शरीर का अंग मानते हुए शुक्र नीति के अनुसार दुर्ग को शरीर के प्रमुख अंग ‘हाथ’ की संज्ञा दी है।
(1) एरण दुर्ग :-
•वे दुर्ग, जिसके मार्ग में खाई, काँटो व पत्थरों से दुर्गम हों।
•उदाहरण :-जालौर दुर्ग,रणथम्भौर दुर्ग
(2) औदुक दुर्ग :-
•जल दुर्ग भी कहा जाता है। ऐसा दुर्ग जो वि शाल जल राशि से घिरा हुआ हो।
उदाहरण :-गागरोण दुर्ग,भैंसरोडगढ़ ,शेरगढ़ दुर्ग ।
(3) पारिख दुर्ग :-
•वह दुर्ग, जिसके चारों तरफ बहुत बड़ी खाई हो।
•उदाहरण :-जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)। लोहगढ़ दुर्ग या भरतपुर दुर्ग।
(4) पारिध दुर्ग :-
•ऐसा दुर्ग जिसके चारों तरफ ईंट, पत्थर तथा मिट्टी से बनी बड़ी-बड़ी दीवारों का वि शाल परकोटा हो।
•उदाहरण :-चित्तौड़ दुर्ग, जैसलमेर,कुंभलगढ़ दुर्ग।
(5) गिरि दुर्ग :-
•किसी उच्च गिरि या पर्वत पर अवस्थित दुर्ग।एकांत में पहाड़ी पर हो तथा जल संचय प्रबंध हो जैसे-दुर्ग, कुम्भलगढ़
•उदाहरण :-चित्तौड़ दुर्ग, मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) आदि ।
(6) धान्वन दुर्ग :-
•मरुभूमि (मरुस्थल) में बना दुर्ग।जो दुर्ग चारों ओर से रेत के ऊंचे-ऊंचे टीलों से घिरा होता है
•उदाहरण :-जैसलमेर,भटनेर,बीकानेर,चौमूं का दुर्ग,अकबर का किला।
(7) वन /ओरण दुर्ग :-
•सघन बीहड़ वनों में निर्मित दुर्ग।
•उदाहरण :-सिवाणा,जालौर दुर्ग।
(8) सैन्य दुर्ग :-
•खंडों या ईटों से समतल भूमि पर निर्मित दुर्ग, जहाँ युद्ध की व्यूह रचना में चतुर सैनिक निवास करते हो। इस श्रेणी में लगभग सभी दुर्ग आते हैं।शुक्रनीति में सैन्य दुर्ग को सभी दुर्गों से श्रेष्ठ माना गया है ।
(9) सहाय दुर्ग :-
•वह दुर्ग, जिसमें शूरवीर तथा सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते हो।
उदाहरण :-•जालौर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग आदि ।
•चित्तौड़ दुर्ग धान्वन श्रेणी के दुर्ग को छोड़कर सभी श्रेणी का दुर्ग है।
•भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़) तथा भरतपुर का लौहागढ़ दुर्ग मिट्टी से बने दुर्ग है।
राजस्थान के 6 दुर्ग यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल:-
ये दुर्ग जून, 2013 में नोमपेन्ह (कम्बोडिया) में हुई वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में यूनेस्को साइट की सूची में शामिल किये गये।
1.आमेर दुर्ग
2.गागरोण दुर्ग
3.कुम्भलगढ़ दुर्ग
4.जैसलमेर दुर्ग
5.रणथम्भौर दुर्ग
6.चित्ताैड़गढ़ दुर्ग।
ये दुर्ग जून, 2013 में नोमपेन्ह (कम्बोडिया) में हुई वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में यूनेस्को साइट की सूची में शामिल किये गये।
राजस्थान के दुर्गों पर आक्रमण :-
क्र. सं. | दुर्ग | आक्रमणकारी | समय | तत्कालीन शासक |
1 | भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़) | (i) महमूद गजनवी (ii) तैमूर (iii) अकबर | (i)1001 ई. (ii)1398 ई. (iii)1570 ई. | – |
2 | रणथम्भौर दुर्ग (सवाईमाधोपुर) | अलाउद्दीन खिलजी | 1301 ई. | राणा हम्मीर देव चौहान |
3. | गागरोण दुर्ग (झालावाड़) | (i) होशंग शाह (मांडू सुल्तान) (ii) महमूद खिलजी | (i)1423 ई. (ii)1444 ई. | (i)अचलदास खींची (ii)पाल्हणसी |
4. | चित्तौड़ दुर्ग | (i) अलाउद्दीन खिलजी (ii) बहादुरशाह (iii)अकबर | (i)1303 ई. (ii)1534 ई (iii)1568 ई. | (i)रावल रतनसिहं (ii)विक्रमादि त्य (iii)उदयसिहं |
5. | जैसलमेर दुर्ग | (i) अलाउद्दीन खिलजी (ii) फिरोज तुगलक (iii) अमीर अली (कंधार) | (i)1294 ई. (ii)1351-1388 ई. के मध्य (iii)1550 ई. | (i)रावल मूलराज (ii)रावल दूदा (iii)लूणकरण |
6. | सुवर्णगिरि दुर्ग (जालौर) | (i) अलाउद्दीन खिलजी | 1311-12 ई. | कान्हड़देव |
7. | सिवाणा दुर्ग | (i) अलाउद्दीन खिलजी | 1308 ई. | सातलदेव |
8. | शेरगढ़ दुर्ग (धौलपुर) | (i) बहलोल लोदी | 1500 ई. | – |
LIST OF FORTS/CASTLES OF RAJASTHAN ||राजस्थान के किलो की सूची
1.चित्तौड़/चित्तौड़गढ़ दुर्ग :-
- निर्माता :-सातवीं शताब्दी में चित्रांगद मौर्य द्वारा (मौर्य राजा) (प्रसिद्ध ग्रंथ वीर विनोद के अनुसार)
- चित्रांगद मौर्य ने इसे अपने नाम पर चित्रकूट नाम करा । बाद में इसका नाम चित्तौड़ हुआ |
- चित्तौड़गढ का किला राज्य के सबसे प्राचीन और प्रमुख किलों में से एक है | सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट (आवासीय दुर्ग) है
- चितौड़ में गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम पर स्थित दुर्ग।
- 700 एकड़ में फैले चित्तौड़गढ़ के किले को भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है।
- 616 मीटर /1850 feet ऊँचे अरावली पर्वत श्रृखला के मेसा पठार पर निर्मित दुर्ग। (गिरि दुर्ग)
- यह दुर्ग राजस्थान के किलों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है। (क्षेत्रफल – 28 वर्ग कि मी./700 एकड़ )
- यह दिल्ली-मालवा मार्ग पर अवस्थित है।
- यह मौर्य कालिन दुर्ग राज्य का प्रथम या प्राचीनतम दुर्ग माना जाता है।
- यह दुर्ग ‘धान्वन दुर्ग’ को छोड़कर शेष सभी 8 श्रेणियों में रखा जा सकता है।
- आकार :-व्हेल मछली के समान।
- उपनाम :-राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर, चित्रकूट, दुर्गा धिराज।
- इस दुर्ग की परिधि लगभग 13 किलोमीटर हैं।
- मेवाड़ के गुहिलवंशीय शासक बप्पा रावल ने मौर्यवंश के अंतिम शासक शासक मानमोरी को परास्त कर 734 ई. में इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
- फिर कुछ समय बाद मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में शामिल किया ।
- सन् 1133 में जयसिंह (सिद्धराज)(जो गुजरात के सोलंकी राजा थे ) ने यशोवर्मन(परमार ) को युद्ध में हराकर परमारों से मालवा छीन लिया और फिर चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी सोलंकियों के अधिकार में आया।
- कुछ समय पच्यत कुमारपाल(उत्तराधिकारी जयसिंह के) के भतीजे अजयपाल को युद्ध में परास्त कर मेवाड़ के राजा सामंत सिंह ने सन् 1174 के आसपास पुनः गुहिलवंशियों का मेवाड़ पर आधिपत्य स्थापित किया ।
- इस दुर्ग में अदबद् जी का मंदिर, रानी पद्मिनी का महल, गोरा-बादल महल, कालिका माता मंदिर, सुरज कुण्ड,समद्धिश्वर मंदिर, जयमल-फत्ता (पता) हवेलियां, तुलजा माता मंदिर, कुम्भश्याम मंदिर, सतबीश देवरी जैन मदिंर, श्रृंगार चवंरी जनै मन्दिर एव नवलखा भण्डार स्थित है।
- दुर्ग के भीतर विजय स्तम्भ (9 मंजिला) भव्य इमारत है। इसका निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा 1440 ई. से 1448ई. में मालवा विजय के उपलक्ष्य में करवाया। विजय स्तम्भ को ‘भारतीय मूर्ति कला का विश्वकोश’ कहा जाता है।
- तीन साके :-
- पहला साका :-1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय।
- तत्कालीन शासक :-राणा रतनसि हं ।
- जौहर :-पद्मिनी के नेतृत्व में।
- गौरा-बादल का सम्बन्ध चित्तौड़ के पहले साके से है जो शहीद हुए थे ।
- विजय :-अलाउद्दीन खिलजी
- अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज्रखाँ को चितोड़ सौंपा और अलाउद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग का नाम खिज्राबाद किया ।
- खिज्र खाँ ने वापसी पर चित्तौड़गढ़ मालदेव(कान्हादेव के भाई) को सौंपा ।
- बाप्पा रावल के वंशज राजा हमीर ने पुनः मालदेव से यह किला हस्तगत किया
- चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल शहीद हुए।
- रानी पद्मिनी सिहंल द्वीप के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री थी।
- दूसरा साका :-1534 ई. में बहादुरशाह (गुजरात सुल्तान) के आक्रमण के समय
- तत्कालीन शासक :-विक्रमादि त्य
- जौहर :-कर्मावती के नेतृत्व में।
- केसरिया :-रावत बाघसिहं के नेतत्ृव में।
- बहादुरशाह ने अपने सेनापति रुमीखाँ को इस अभियान का नेतृत्व सौंपा था।
- इस युद्ध में रानी कर्मावती ने मुगल शासक हुमायूँ को राखी भेजकर मदद माँगी थी।
- तीसरा साका :-1568 ई. में अकबर के आक्रमण के समय।
- 1568 ई. तत्कालीन शासक :-राणा उदयसिहं
- इस युद्ध में जयमल व फत्ता (पता) ने अदम्य वीरता का परिचय दिया।
- इस युद्ध के बाद महाराणा उदयसिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ से हटाकर उदयपुर करि।
•इस दुर्ग में 7 प्रवेश द्वार हैं
पाडन पोल (मुख्य व पहला प्रवेश द्वार), भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल,
रामपोल।
पाडन पोल
यह दुर्ग का मुख्य व पहला प्रवेश द्वार है। किवंदिति है कि एक बार युद्ध में खून की नदी बहने से एक भैंसा(पाड़ा) बहकर यहाँ आया था तभी से इस द्वार को पाडनपोल कहा जाता है।
भैरव पोल (भैरों पोल)
दूसरा दरवाजा।यह पादन पोल से उतर के और स्तिथ है जिसे भैरव पोल कहा जाता है। इसका नाम सोलंकी (व्यक्ति जो देसूरी के थे) भैरोंदास के नाम पड़ा है, जो 1534 ई में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के साथ युद्ध में शहीद हुए थे।
हनुमान पोल
तीसरा प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहते है।
गणेश पोल
हनुमान पोल से थोड़ा आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, चतुर्थ द्वार है।
जोड़ला पोल
पंचम द्वार जोड़ला पोल कहलाता है क्युकी यह 6ठे द्वार के निकट है
लक्ष्मण पोल
छठे द्वार का नाम लक्षमण पोल है
राम पोल
लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं।
इसके निकट ही महाराणाओं के पूर्वज माने जाने वाले सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्र जी का मंदिर है। राम पोल दरवाजा किला का सातवां तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है।
NOTE:- नवलखा बुर्ज (बनवीर द्वारा निर्मित लघु दुर्ग) इसी किले में है।
•राज्य का सबसे बड़ा लिविगं फोर्ट।
•दुर्ग में जलापूर्ति के स्रोत :-रत्नेश्वर तालाब, कुम्भसागर, गोमुख झरना, हाथीकुण्ड, भीमलत तालाब, झालीबाव तालाब।
•दुर्ग के भीतर स्थित फतह प्रकाश महल को संग्रहालय बना दि या गया।
•कल्ला राठौड़ की छतरी (4 खम्भों की छतरी) इसी दुर्ग में है।
•लाखोटा की बारी :-चित्तौड़ दुर्ग की उत्तरी खिड़की।
कीर्ति स्तम्भ(विजय स्तम्भ)
महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूदशाह ख़िलजी को युद्ध में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में इष्टदेव विष्णु के निमित्त यह कीर्ति स्तम्भ बनवाया था।
यह स्तम्भ 9 मंजिला तथा 120 फीट ऊंचा है।
इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित है।
इसे भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष अथवा अजायबघर भी कहते हैं
•दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ के वास्तुकार जैता, नापा, पोमा एव पूंजा थे।
जैन कीर्ति स्तम्भ
जैन कीर्ति स्तम्भ 75 फीट ऊँचा, सात मंजिलों वाला एक स्तम्भ बना है, जिसका निर्माण चौदहवीं शताब्दी में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के बघेरवाल महाजन सा नांय के पुत्र जीजा ने करवाया था। यह स्तम्भ नीचे से 30 फुट तथा ऊपरी हिस्से पर 15 फुट चौड़ा है तथा ऊपर की ओर जाने के लिए तंग नाल बनी हुई हैं।
•इस दुर्ग में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ (7 मंजिला/75 फ़ीट) का निर्माण बघेरवाला जैन के पुत्र जीजाक द्वारा 13वीं सदी में करवाया गया था। (भगवान आदिनाथ का स्मारक)।
जैन कीर्ति स्तम्भ के लेखक कवि अत्री एवं महेश थे। इसका निर्माण 13वीं सदी में जैन सम्प्रदाय के श्रावक
‘जीजाक’ ने करवाया था।
महावीर स्वामी का मंदिर
जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है।
नीलकंठ महादेव का मंदिर(समाधीश्वर मंदिर)
यह भगवान शिव को समर्पित है। इसका निर्माण11वीं शताब्दी के प्रारंभ में भोज परमार द्वारा करवाया था। बाद में मोकल ने 1428 ई. में इसका जीर्णोद्धार किया। मंदिर में एक गर्भगृह, एक अन्तराल तथा एक मुख्य मंडप है जिसके तीन ओर अर्थात् उत्तरी, पश्चिमी तथा दक्षिणी ओर मुख मंडप (प्रवेश दालान) हैं। मंदिर में भगवान शिव की त्रिमुखी विशाल मूर्ति स्थापित है।
कलिका माता का मन्दिर
राजा मानभंग द्वारा 9वीं शताब्दी में निर्मित यह मन्दिर मूल रूप से सूर्य को समर्पित है,
चित्तौड़ी बूर्ज व मोहर मगरी
यह बुर्ज दुर्ग के आखिर में दक्षिण में है
चित्तोडी बूर्ज से 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी या कृत्रिम मिट्टी का टीला है।
इस टीले को 1567 ई. में अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने लिए बनाया था और किवंदिति है की प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक मोहर दी गई थी। तभी से इसे मोहर मगरी कहा जाता है।
कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, साममिद्धेश्वर मंदिर ,सात बीस देवरी जैन मंदिर , चित्रांग मोरी तालाब,पदमनी महल, फतेह प्रकाश संग्रहालय,जयमल व कल्ला की छतरियाँ तथा कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण -शीर्ण अवस्था) आदि प्रमुख दर्शनिय स्थल है।
•दुर्ग का सबसे प्राचीन दरवाजा :- सूरजपोल।
•रावत बाघसिहं का स्मारक इसी दुर्ग में है।
•विजय स्तम्भ को कर्नल जेम्स टॉड ने ‘रोम के टार्जन’ की उपमा दी।
चित्तौड़ दुर्ग की तुलना बिट्रीश पुरातत्व दुत सर हूयूज केशर ने एक भीमकाय जहाज से की थी उन्होंने लिखा हैं-
“चित्तौड़ के इस सूनसान किलें मे विचरण करते समय मुझे ऐसा लगा मानों मे किसी भीमकाय जहाज की छत पर चल रहा हूँ”
•दुर्ग के सम्बन्ध में प्रचलित कहावत :-
गढ़ तो चित्तौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया।
NOTE:- एक किंवदन्मत के अनुसार पाण्डवों के दूसरे भाई भीम ने इसे करीब 5000 वर्ष पूर्व बनवाया था। इस संबंध में प्रचलित कहानी यह है कि एक बार भीम जब संपत्ति की खोज में निकला तो उसे रास्ते में एक योगी निर्भयनाथ व एक यति(एक पौराणिक प्राणी) कुकड़ेश्वर से भेंट होती है। भीम ने योगी से पारस पत्थर मांगा, जिसे योगी इस शर्त पर देने को राजी हुआ कि वह इस पहाड़ी स्थान पर रातों-रात एक दुर्ग का निर्माण करवा दे। भीम ने अपने शौर्य और देवरुप भाइयों की सहायता से यह कार्य करीब-करीब समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ दक्षिणी हिस्से का थोड़ा-सा कार्य शेष था। योगी के ऋदय में कपट ने स्थान ले लिया और उसने यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा, जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी, जिससे वहाँ एक बड़ा सा गड्ढ़ा बन गया, जिसे लोग भी-लत तालाब के नाम से जानते है। वह स्थान जहाँ भीम के घुटने ने विश्राम किया, भीम-घोड़ी कहलाता है। जिस तालाब पर यति ने मुर्गे की बाँग की थी, वह कुकड़ेश्वर कहलाता है।
- यह राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी द्वार तथा मालवा का प्रवेश द्वार है ।
2.मेहरानगढ़ दुर्ग :-
•निर्माता :-राव जोधा
•समय :-12 मई 1459 ई. में
•नींव :-करणी माता द्वारा
•चिड़ियाटूंक पहाड़ी पर निर्मित गिरि दुर्ग। (पचेटिया पर्वत पर निर्मित)।
•आकृति :-मोर (म्यूर) के समान।
•अन्य नाम :-म्यूरध्वज/ म्यूरघ्वजगढ़, गढ़चिन्तामणि (कुण्डली के अनुसार नामकरण)।
•इस दुर्ग की नींव में राजिया (राजाराम) मेघवाल को जीवित चुना गया।
•प्रवेश द्वार :-
(i) जयपोल – उत्तर-पर्वू में। मानसिहं द्वारा 1808 ई. में निर्मित।
(ii) फतहे पोल – दक्षिण-पश्चिम में। अजीतसिहं 1707 ई. में निर्मित।
•मामा-भान्जा (धन्ना और भींवा) की छतरी मेहरानगढ़ दुर्ग में लौहा पोल द्वार के पास है। यह 10 खम्भों की छतरी है।
•भूरे खाँ की मजार इसी दुर्ग में है।
•अन्य प्रवेश द्वार :-लोहापोल ,ध्रुव पोल, सुरज पोल, इमरत पोल तथा भैरों पोल,कांगरापोल।
•पुस्तक प्रकाश :-इस दुर्ग में महाराजा मानसिहं द्वारा स्थापित पुस्तकालय है ।
•किले में तोपें :-चामुण्डा , भवानी, कालका, किलकिला, शम्भुबाण, गजनी खाँ, कड़क, गजक, जमजमा, बिजली, बिच्छूबाण, नुसरत, गुब्बार, धुड़धाणी,नागपली, मागवा, मीरक, …।
•किलकिला तोप :-राजा अजीत सिहं द्वारा अहमदाबाद में बनवाई गई।
•शम्भुबाण तोप :-राजा अभय सि हं ने सर बलुन्दखाँ से छीनी।
•गजनी खाँ तोप :-1607 ई. में राजा गजसि हं ने जालौर विजय पर हासिल की।
•इस दुर्ग में चामुण्डा माता, मुरली मनोहर तथा आनंदघनजी के प्राचीन मंदिर हैं।
•वीर कीरतसिहं सोढ़ा की छतरी इसी दुर्ग में है।
•दुर्ग के भीतर राठौड़ों की कुलदेवी नागणेची जी का मंदिर है।
•श्रृंगार चौकी :-महाराजा तख्तसिहं द्वारा दौलतखाने के आगँन में निर्मित चौकी, जहाँ जोधपुर के राजाओ का राजतिलक होता था।
•प्रसिद्ध ब्रिटिश साहित्यकार रूडयार्ड किपलिगं ने इस दुर्ग के बारे में कहा कि ‘यह दुर्ग देवताओ, परियों एव फरिश्तों द्वारा निर्मित हैं।’
•जैकलिन कैनेडी ने इस दुर्ग को ‘विश्व का आठवां आश्चर्य’ कहा है ।
•इस दुर्ग में सोने के बारीक काम वाला मोती महल एवं भिति चित्रों से सजा फूलमहल स्थित है। ‘फूलमहल’ का निर्माण महाराजा अभयसि हं ने करवाया था।
•दुर्ग में राणीसर एवं पदमसर तालाब जल के मुख्य स्रोत है। राणीसर तालाब का निर्माण राव जोधा की रानी जसमा हाड़ी ने करवाया था।
•यह दुर्ग वीर दुर्गा दास की स्वामीभक्ति का साक्ष्य है।
•दुर्ग में स्थित संग्रहालय में अकबर की तलवार रखी हुई है।
•राजस्थान का प्रथम दुर्ग जिसमें ‘ऑडियो गाइड टूर’ की सुविधा है।
•यहाँ नीलम जड़ित मरकत-मणि के दो गुलाबी प्यालेनुमा जलाशय ( गुलाब सागर, गुलाब सागर का बच्चा) स्थित है ।
दर्शनिय स्थल :-
1.चामुण्डा माता मंदिर –यह मंदिर राव जोधा ने बनवाया।
•2008 वर्ष में चामुण्डा मंदिर में भगदड़ मच जाने से कई लोग मारे गये इसकी जाँच हेतु जसराज चोपड़ा कमेटी का गठन किया गया।
1857 की क्रांति के समय इस मंदिर के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण इसका पुनर्निर्माण महाराजा तखतसिंह न करवाया।
2.आनंद धनजी का मंदिर एवं मुरली मनोहर जी का मंदिर
3.चैखे लाव महल- निर्माता:-राव जोधा ।
4. फतह महल – निर्माता:-अजीत सिंह ने
5. मोती महल – निर्माता:- सूरसिंह ।मोती महल की छत व दीवारों पर सोने की पॉलिश महाराजा तख्तसिंह ने करवाया
6. भूरे खां की मजार
7.ख्वाबगाह
8.तख्त विलास
9.बिचला महल
10.दौलतखाना
11.राणीसर तथा पदमसागर तालाब
12.मेहरानगढ़ संग्रहालय
दुर्ग के सम्बन्ध में प्रचलित कहावत – ” जबरों गढ़ जोधाणा रो”
3.कुम्भलगढ़ दुर्ग :-
- मेवाड़ – मारवाड़ सीमा पर राजसमन्द(सादड़ी गाँव) जिले में स्थित गिरि दुर्ग।
- अरावली की तेरह चोटियों से घिरा, जरगा पहाडी पर (1148 मी.) हेमकूट , नील हिमवंत , गन्धमादन पहाडी के मध्य ऊंचाई पर निर्मित गिरी श्रेणी का दुर्ग है
- इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावशेषों पर शिल्पी मंडन की देखरेख में करवाया था अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में ।
- निर्माण काल :- 1448-1459 ई एवं इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 13 मई 1459 वार शनिवार को पूरा कराया था।.।
- प्रवेश द्वार(9 द्वार) :-ओरठ पोल, हल्ला पोल, हनुमान पोल, विजय पोल, भैरव पोल, चौगान पोल, पागड़ा पोल और गणेश पोल।
- उपनाम :-मेवाड़ की तीसरी आँख, मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी ,मारवाड़ की छाती पर उठी हुई तलवार , मत्स्येन्द्र, एस्ट्रूस्कन(कर्नल जेम्स टॉड), कुम्भलमेर ,कुम्भलमेरू, कमलमीर ,कुंभपुर ,मच्छेद और माहोर।
- यह अरावली पर्वत की 13 ऊँची चोटियों से घिरा दुर्ग है।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग 36 कि मी. लम्बे परकोटे/दीवार से सुरक्षित है।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग की सुरक्षा दीवार इतनी चौड़ी है कि एक साथ आठ घुड़सवार चल सकते हैं।इस लिए इसे ‘भारत की महान दीवार’ भी कहा जाता है।
- कर्नल टॉड ने कुम्भलगढ़ की तुलना सुदृढ़ प्राचीरों, बुर्जों , कँगूरों के विचारों से ‘एस्ट्रूस्कन’ से की है।
- इस दुर्ग में झालीबाव बावड़ी, कुम्भास्वामी, विष्णु मंदिर, मामादेव तालाब, झाली रानी की मालिया आदि अन्य प्रसिद्ध स्मारक निर्मित हैं।
- ‘उड़ना राजकुमार’ के नाम से प्रसिद्ध कुंवर पृथ्वीराज की छतरी इसी दुर्ग में है। (12 खम्भों की छतरी)।
- कटारगढ़ (मेवाड़ की तीसरी आँख) :-कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित लघु दुर्ग। कटारगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। राणा कुम्भा के पुत्र ऊदा ने कटारगढ़ में ही कुम्भा की हत्या की। कटारगढ़ में ही ‘बादल महल’, झाली रानी का मालिया महल,झालीबाब बावड़ी तथा मामादेव का कुंड(इस कुंड के पास ही कुंभा द्वारा निर्मित कुभास्वामी विष्णु मंदिर है) बना हुआ है। इसे ‘बादल महल/पैलेस ऑफ क्लाउड्स(महाराणा फतेहसिंह द्वारा निर्मित ) भी कहा जाता है।
- इस दुर्ग में ही महाराणा उदय सि हं का राज्याभिषके हुआ था।
- 1578 में इस किले पर सर्वप्रथम शाहबाज खाँ(अकबर का सेनापति) का अधिकार हुआ ।
- राजस्थान में सर्वाधिक दुर्गों का निर्माण मेवाड़ महाराणा कुम्भा द्वारा किया गया था। कुम्भा ने 84 दुर्गों में से 32 दुर्गों (प्रमुख :-अचलगढ़, कुंभलगढ़, बसंतगढ़,बैराट का दुर्ग,मचान का दुर्ग) का निर्माण किया।
- कुंभलगढ़ दुर्ग के पूर्व में हाथिया गुढ़ा की नाल है तथा किले की तहलटी में महाराणा रायमल के बड़े पुत्र व राणा सांगा के भाई कुंवर पृथ्वीराज की 12 स्तंभो की छतरी (वास्तुकार-घषनपना) बनी हुई है जो ‘उडणा राजकुमार’ के नाम से प्रसिद्ध था ।
- इस दुर्ग की ऊँचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।
- कुंभलगढ़ दुर्ग के उत्तर की तरफ से पैदल रास्ता ‘टूँट्या का होड़ा’ , पूर्व की तरफ हाथी गुढा की नाल में जाने का रास्ता ‘दाणीवटा’ एवं दुर्ग की पश्चिम दिशा का रास्ता ‘टीडाबारी’ कहलाता है ।
- कुम्भलगढ़ दुर्ग से ही महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध की तैयारी की थी।
- इस दुर्ग में नीलकंठ महादेव का मंदिर तथा यज्ञ की प्राचीन वेदी है।
4.रणथम्भौर दुर्ग :-
- सवाईमाधोपुर जिले में रणथम्भौर दुर्ग अरावली पर्वत की सात पहाडि़यों से घिरा हुआ अरावली पर्वतमालाओं से घिरा हुआ थंभौर पहाड़ी पर स्थिति एरण दुर्ग ,गिरि व वन दुर्ग है।
- निर्माण :-8वीं शताब्दी में चौहान शासकों द्वारा। (रणथम्मनदेव चौहान)
- अजमेर शासक पृथ्वीराज तृतीय के तराइन के द्वितीय युद्ध में हार जाने के बाद उसके पुत्र गोविंदराज ने यहां अपना शासन स्थापित किया था ।
- यह दुर्ग विषम आकार वाली सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
- इस दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि –‘अन्य सब दुर्ग नंगे हैं, जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।’
- इस दुर्ग में प्रसिद्ध गणेश जी का मंदिर, पीर सदरुद्दीन की दरगाह, सुपारी महल, जौरां-भौरां (अन्न भंडार), जोगी महल, बादल महल, हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी, रनि हाड़ तालाब प्रमुख है।
- पद्मला तालाब इसी दुर्ग में है।
- रणथम्भौर दुर्ग का पतन :- 11 जुलाई, 1301 ई.। राजस्थान का पहला साका 1301 ई. में हम्मीर देव चौहान के समय हुआ था
- रणथम्भौर की विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर दुर्ग उलुग खान को सौंपा।
- हम्मीर देव ने सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेनापति मीर मुहम्मदशाह को रणथम्भौर दुर्ग में शरण दी थी।
- जब अलाउद्दीन खिलजी द्वारा रणथम्भौर पर आक्रमण किया गया। इस आक्रमण के समय इतिहासकार अमीर खुसराे भी मौजूद था।इतिहासकारों की माने तो रणथम्भौर दुर्ग में 1301 ईस्वी में पहला जल जौहर हुआ था।
- हम्मीर देव की पत्नी रानी रंगादेवी, हम्मीर की पुत्री देवल ने रणथम्भौर दुर्ग स्थित पद्मला तालाब में कूदकर जल जौहर किया था। इतिहासकार इसे राजस्थान पहला एवं एकमात्र जल जौहर भी मानते हैं।
- यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है।
- दुर्ग से जुड़े विशिष्ट शब्द :-
- पाशेब :-दुर्ग में विशिष्ट चबूतरे।
- गरगच, मगरबी :-दुर्ग से ज्वलनशील पदार्थ फेंकने के यंत्र।
- अर्रादा:-पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र।
- अकबर ने इस दुर्ग में ‘सिक्का ढालने की टकसाल’ स्थापित की।
- दुर्ग की परिधि :-7 मील
- दुर्ग का वास्तविक नाम :- रन्त:परु अर्थात रन की घाटी में स्थित नगर।
- 32 खम्भों की छतरी इसी दुर्ग में है। (हम्मीर देव द्वारा निर्मित)।रणथम्भौर दुर्ग मे लाल पत्थरों से निर्मित 32 कम्भों की एक कलात्मक छत्रि है जिसका निर्माण हम्मिर देव चौहन ने अपने पिता जेत्र सिंह के 32 वर्ष के शासन के प्रतिक के रूप में करवाया था।
- प्रवेश द्वार :-
- नौलखा दरवाजा, हाथी पोल, गणेश पोल, सूरज पोल, त्रिपोलिया/अंधेरी दरवाजा।
- अकबर के शासनकाल में रणथम्भौर दुर्ग जगन्नाथ कच्छवाहा की जागीर में रहा। शाहजहां के समय यहाँ का अधिपति विट्ठलदास गौड़ था।
- पद्मला सुपारी महल (रणथम्भौर) में एक ही स्थान पर मन्दिर, मस्जिद और गिरजाघर स्थित है।
- रणथम्भौर किले में बने लक्ष्मी नारायण मंदिर, हम्मीर महल, हम्मीर की कचहरी,पद्मला सुपारी महल(सुपारी महल में एक ही स्थान पर मन्दिर और गिर्जाघर स्थित है।), बादल महल, बत्तीस खंभों की छतरी, जैन मंदिर तथा त्रिनेत्र गणेश मंदिर ,फौजी छावनी,पुष्पक भवन (हम्मीर देव ने अपनी मालवा विजय की स्मृति में),अधूरा स्वप्न भवन(रानी कर्मावती ने ),हम्मीर घोटा उल्लेखनीय हैं।
5.आमेर दुर्ग(AMER FORT) :-
- जयपुर नगर से उत्तर की ओर 11 कि मी. दूर कालीखोह पहाड़ी पर स्थित गिरी दुर्ग।
- कोकिलदेव ने 1036 ई. में यह दुर्ग आमेर के मीणा शासक भुट्टो से छीन लिया।
- निर्माण 1150 ई. में दुल्हराय कच्छवाह द्वारा
- राजा मानसिहं प्रथम ने दुर्ग का पुन र्निर्माण करवाया।
- हिन्दू-मुस्लिम शैली का समन्वित रूप।
- इस दुर्ग में शिला माता मंदिर ,अंबिकेश्वर महादेव मंदिर , नृसिंह जी का मंदिर, जगत शिरोमणि मंदिर, दीवाने आम, दीवाने खास(शीश महल/जय मंदिर)/दर्पण धाम(महाकवि बिहारी ने कहा) दर्शनीय स्थल हैं
- यश मन्दिर(दीवान-ए-खास की छत पर बना संगमरमर की सुंदर व अलंकृत जालियों के लिए विख्यात), दिलखुश महल, 24 रानियों का महल, बुखारा गार्डन ,बारादरी दर्शनीय स्थल हैं।
- सुखमंदिर(राजाओं का ग्रीष्मकालीन आवास)
- सुहाग/सौभाग्य मंदिर(रानियों के मनोरंजन व हँसी-मजाक के लिए ) दर्शनीय स्थल हैं।
- आमेर के महल :- महाराजा मानसिंह के महल , रनिवास,शीशमहल,कदमी महल (सबसे पुराना महल)
- दुर्ग के अन्य नाम :-आम्बेर, अम्बिकापुर, अम्बर, अम्बावती,अंबरीश।
- आमेर दुर्ग के निकट नीचे मावठा तालाब एवं दिलाराम का बाग एवं मावठा झील के मध्य में स्थित सुगंधित केसर की क्यारियों (मिर्जा राजा जयसिंह निर्मित)उसके सौन्दर्य को द्विगुणित करते हैं।
- सुख मंदिर :-दुर्ग में स्थित यह महल राजाओं का ग्रीष्मकालीन निवास था।
- आमेर के जगत शिरोमणि मंदिर में प्रतिष्ठापित भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति लगी हुई है। यह मूर्ति आमेर के राजा मानसिहं द्वारा चित्तौड़ से लाई गयी थी। इस मदिंर का निर्माण महाराजा मानसिहं की पत्नी कनकावती द्वारा अपने दिवगंत पत्रु जगतसिहं की याद में करवाया गया था।
- 1707 ई. में मुगल बादशाह मुअज्जम (बहादुरशाह) ने आमेर दुर्ग पर अधिकार कर उसका नाम मोमिनाबाद रखा।
- दीवान-ए-आम एवं दीवान-ए-खास का नर्माण मिर्जा राजा जयसिहं ने करवाया था।
- दुर्ग में गणेश पोल के निर्माता सवाई जयसिहं द्वितीय थे।आमेर दुर्ग के प्रवेश द्वार गणेशपोल को फर्ग्यूसन ने विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रवेश द्वार माना है ।
- जयपोल के अंदर प्रांगण :-‘जलेब चौक’ ।
- बालाबाई (महाराजा पृथ्वीराज की रानी) की साल इसी दुर्ग में है।
- प्रवेश द्वार :-जयपोल, सिहं पोल, गणेश पोल, सरूज पोल, चाँदपोल।
- सौभाग्य (सुहाग) मंदिर :-आयताकार महल, जो रानियों के मनोविनोद तथा हृास-परि हृास का स्थान था। इसके किवाड़ चंदन के बने हुए हैं।
- बिशप हेबर ने आमेर के महलों को क्रेमलिन के महलों से भी ज्यादा सुन्दर एवं अलंकृत बताया।विशेष हैबर आमेर के महलों की सुंदरता के बारे में लिखता है कि ” मैने क्रेमलिन में जो कुछ देखा है और अलब्रह्राा के बारे में जो कुछ सुना है उससे भी बढ़कर ये महल है।”
- जून, 2013 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में आमेर दुर्ग शामिल कर लिया गया
6.गागरोण दुर्ग(GAGRON DURG) :-
- जल दुर्ग (कालीसिन्ध-आहू नदी के संगम पर)(मुकंदरा पहाड़ी) डोड परमार शासकों द्वारा निर्मित। (11वीं सदी में)
- सामेलणी (झालावाड़) में स्थित दुर्ग।
- अन्य नाम :-धूलरगढ़ / डोडगढ़, गर्गराटपुर,मुस्तफाबाद
- निर्माता डोड राजा बीजलदेव द्वारा 11-12 सदी के आसपास
- चौहान कल्पद्रमु ग्रन्थ के अनुसार खींची राजवशं के सस्ंथापक देवनसि हं (धारू) ने 12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में डोड शासक बीजलदेव को परास्त कर इसका नाम गागरोण दुर्ग रखा।
- इस दुर्ग में खुरासान से गागरोण आये सूफी संत ‘मिट्ठे साहब की दरगाह’(उर्स आज भी प्रतिवर्ष यहाँ लगता है) तथा औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलन्द दरवाजा भी स्थित है।
- जैतसिंह के शासनकाल में खुरासान से प्रसिद्ध सूफीसंत हमीदुद्दीन चिश्ती (मिट्ठे साहब) गागरोण आए तब इनकी समाधि मीठे शाह की दरगाह यहाँ है ।
- इस दुर्ग में संत पीपा की छतरी है(वह संत रामानन्द के शिष्य एवं गागरोन के शासक थे )।
- संत पीपा ने गागरोण राज्य अपने अनुज अचलदास खींची को सौंप कर संत बने ।
- इस दुर्ग में भगवान मधुसूदन का मंदिर (राव दुर्जनसाल हाडा ने बनवाया)तथा कोटा रियासत के सिक्के ढालने की टकसाल है।
- प्रतिवर्ष यहाँ संत पीपा की पुण्यतिथि पर मेला भरता है
- इस दुर्ग में दो साके हुए :-
- प्रथम साका :-1423 ई. में मांडू सुल्तान होशंगशाह/अलपंखा गौरी के आक्रमण के समय हुआ। उस समय गागरोण का शासक अचलदास खींची(भोज का पुत्र) था। अचलदास खींची की रानी उमादे ने जौहर किया।
- राजा अचलदास ने वंश की रक्षा हेतु अपने पुत्र पाल्हणसी को दुर्ग से पलायन करवाया अवं अचलदास के साथ राज्यकवि शिवदास गाडण भी दुर्ग से निकल गए और बाद में उन्होंने राजा अचलदास की वीरता और शौर्य से प्रेरित होकर “अचलदास खिंची री वचनिका “ की रचना की थी
- फिर राणा कुम्भा ने मांडू के सुलतान को हरा कर गागरोण दुर्ग को अपने भांजे पाल्हणसी को दिया
- द्वितीय साका :-1444 ई. में महमूद खिलजी के आक्रमण के समय हुआ। उस समय गागरोण का शासक पाल्हणसी था।सन् 1444 ई. में पाल्हणसी खीची व महमूद खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। पाल्हणसी खींची को भीलो ने मार दिया (जब वह दुर्ग से पलायन कर रहा था) कुम्भा द्वारा भेजे गए धीरा (घीरजदेव) के नेतृत्व में केसरिया हुआ और ललनाओं ने जौहर किया
- महमूद खिलजी ने इस दुर्ग को जीतकर इसका नाम ‘मुस्तफाबाद’ रखा।
- अकबर ने गागरोण दुर्ग पृथ्वीराज/एक भक्त कवि को जागीर में दे दिया।
- सलीम अली(पक्षी विज्ञानी) ने गागरोण क्षेत्र में पाये जाने वाले गागरोणी तोतों(जाति हीरामन हिद्धलखा) के संबंध में अपनी पुस्तक ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स’ में किया है
- पृथ्वीराज ने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेलि क्रिसन रुकमणिरी’ गागरोण में रहकर लिखा।
- जालिमकोट :-गागरोण दुर्ग में कोटा के झाला जालिमसि हं द्वारा निर्मित वि शाल परकोटा।
- रामबुर्ज एवं ध्वजबुर्ज इसकी वि शाल बुर्जें हैं।
- पाषाणकालीन उपकरणों हेतु प्रसिद्ध।
- बादशाह जहाँगीर ने यह किला बूंदी के हाड़ा शासक राव रतन हाड़ा को जागीर में दे दिया।
- गीध कराई :-गागरोण दुर्ग के पास स्थित ऊँची पहाड़ी।
- बुलंद दरवाजा :-औरंगजेब द्वारा निर्मित
- मुद्फ्फर/अरीदा/ढेंकुली :-दुर्ग में पत्थरों की वर्षा करने वाला यंत्र
- यह राज्य का एकमात्र दुर्ग है, जो बिना नींव के एक चट्टान(मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर सीधा खड़ा है)।
7.सोनार/सोनगढ़/जैसलमेर किला( :-
- भाटी वंश के शासक राव जैसल द्वारा जैसलमेर में त्रिकूट पहाड़ी/गोहरान पहाड़ी पर 12 जुलाई 1155 ई. में निर्मित दुर्ग।(जैसलमेर री ख्यात के अनुसार)
- आकृति :-त्रिकूटाकृति ।
- प्रकार :-धान्वन, गिरी श्रेणी का दुर्ग।
- इस दुर्ग का निर्माण शालिवाहन द्वितीय (राव जैसल के पुत्र) ने पूर्ण करवाया।
- इस दुर्ग में 99 बुर्ज हैं। (सर्वाधिक बुर्जों वाला दुर्ग)।
- गहरे पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण स्वर्णगिरि कहलाती है ( दुर्ग निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है)।
- प्रचलित कहावत –‘घोड़ा कीजे काठ का पग कीजे पाषाण, अख्तर कीजे लोहे का तब पहुँचे जैसाण’।
- प्रसिद्व उक्ति:- गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरा, अधगढ़ बीकानेर। भलो चिणायों भाटियां, गढ ते जैसलमेर।
- इस दुर्ग के सम्बन्ध में अबुल फजल की उक्ति – ‘यह ऐसा दुर्ग है, जहाँ पहुँचने के लिए पत्थर की टाँगें चाहिए।’
- सोनारगढ़ दुर्ग का निर्माण चूने का प्रयोग किए बिना पत्थरों को जोड़कर किया गया है।
- जैसलमेर दुर्ग विश्व का एकमात्र दुर्ग है जिसकी छत लकड़ी की बनी हुई है।
- उपनाम :-सोनगढ़, गौहरारगढ़/गोहरानगढ़ , जैसाणागढ़ ,त्रिकूटगढ़ एवं ‘उत्तर भड़ किवाड़’ ,राजस्थान का अंडमान ,रेगिस्तान का गुलाब, ।
- राज्य का दूसरा सबसे बड़ा लिविगं फोर्ट। (पहला – चित्तौड़ दुर्ग )
- राजस्थान में चित्तौड़गढ के पश्चात् सबसे बडा फोर्ट
- कमरकोट :-दुर्ग का घाघरानुमा दुहरा परकोटा। इसे स्थानीय लोग ‘पाड़ा’ भी कहते हैं।
- प्रवेश द्वार :-अक्षय पोल (मुख्य प्रवेश द्वार), गणेश पोल, सूरज पोल, हवा पोल।
- शीश महल/सर्वोत्तम विलास,गज विलास, जवाहर विलास :-दुर्ग में महारावल अखसिै हं द्वारा निर्मित |
- दुर्ग के भीतर जैसल कुआँ प्राचीन पेयजल स्रोत है।
- ‘ढाई साके’ के लिए प्रसिद्ध :-
- पहला साका :-1308 से 1312-13 ई. के मध्य अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय।
- उस समय जैसलमेर का शासक मूलराज था।
- दूसरा साका :-फिरोज तुगलक व राव दूदा, त्रिलोक सिंह के मध्य युद्ध तथा इसमें दूदा व त्रिलोक सिंह की हार हुई।
- तीसरा अर्द्ध साका :-1550 ई. में कंधार के अमीर अली के आक्रमण के समय।
- उस समय जैसलमेर शासक राव लूणकरण थे। इसमें केसरिया हुआ, जौहर नहीं।
- इस दुर्ग में हस्तलिखित ग्रंथों का सबसे बड़ा भंडार ‘जिनभद्र सूरी ग्रंथ भंडार’ अवस्थित है।
- जैसलमेर दुर्ग महलों में पत्थर पर बारीक खुदाई एवं कलात्मक जालियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
- इस दुर्ग के भीतर ही घड़सीसर तालाब है।
- आदिनाथ जैन मंदिर :-इस दुर्ग में स्थित सबसे प्राचीन 12 वीं सदी में निर्मित जैन मंदिर।
- आस्कर विजेता फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा “सोनार किला” फिल्म का निर्माण किया गया।
- सन् 2005 में इस दुर्ग को वल्र्ड हैरिटेज/विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।
- दूर से देखने पर यह दुर्ग पहाड़ी पर लंगर डाले एक जहाज का आभास कराता है।
- वर्ष 2009 में इस दुर्ग पर 5 रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।
- वर्ष 2009 में आए भूकम्प से इसमें दरारें पड़ गई हैं।
- इस दुर्ग के अंदर टीवमराय जी का मंदिर , दशहरा चौक , गज महल , खुशाल राजराजेश्वरी का मंदिर स्थित है ।
- इस दुर्ग के पश्चिम में अमरसागर पोल एवं पूर्व में घड़सीसर का दरवाजा है ।
- बादल महल (5 मंजिला महल) :-सिलावटों ने निर्माण करवाया | इस महल पर ब्रिटेन की वास्तुकला की छाप दिखाई देती है ।
- महारावल बैरीशाल के शासनकाल में भगवान विष्णु के लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण प्रतिहार शैली में बनवाया गया ।
- महारावल वैरिसिंह ने अपनी रानी रत्ना के नाम पर रत्नेश्वर महादेव का मंदिर बनवाया था और अपनी रानी सूर्यकंवर की स्मृति में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया ।
8.तारागढ़ दुर्ग/अजयमेरू दुर्ग(अजमेर) :-
- गिरि दुर्ग।
- निर्माण :-चौहान शासक अजयराज (अजमेर नगर के संस्थापक) द्वारा
- समय :-11वीं सदी में।
- स्थान :-अजमेर में तारागढ़ पर्वत की बीठली पहाड़ी पर।
- यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है।
- उपनाम :-गढ़बीठली दुर्ग, अजयमेरु दुर्ग, राजपूताने की कुंजी , राजस्थान का जिब्राल्टर,अरावली का अरमान,राजस्थान का हृदय
- इस दुर्ग के भीतर प्रसिद्ध मुस्लि म संत मीरान साहब की दरगाह है। यह दरगाह तारागढ़ के प्रथम गवर्नर मीर हुसनै खिगंसवार की है।
- तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण बिशप हैबर ने तारागढ़ दुर्ग को ‘पूर्व का जिब्राल्टर’, “राजस्थान का जिब्राल्टर “,दूसरा जिब्राल्टर की संज्ञा दी।
- मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज पृथ्वीराज/(राणा सांगा के भाई) ने अपनी वीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा।
- शीशाखान :-तारागढ़ पहाड़ी के ठीक नीचे अवस्थित प्राचीन गुफा जिससे अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान फाईसागर के निकट चामुंडा माता के मंदिर की पहाड़ियों पर दर्शन हेतु जाया करते थे।
- हरविलास शारदा (इतिहासकार) ने इस दुर्ग को भारत का प्रथम दुर्ग माना है।
- प्रवेश द्वार :-विजय पोल, लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा, भवानी पोल, हाथी पोल, अरकोट दरवाजा।
- इस दुर्ग की प्राचीर में 14 बुर्जे हैं जिनमें घूँघट, बांदरा, इमली,गूगड़ी, फूटी बुर्ज, नक्कारची की बर्जु , श्रृंगार चँवरी बर्जु , पीपली बर्जु ,दौराई बुर्ज, फतेह बुर्ज आदि प्रमुख हैं।
- दुर्ग के भीतर नाना साहब का झालरा, इब्राहिम का झालरा एवं गोल झालरा आदि बड़े जलाशय विद्यमान हैं।
- घोड़े की मजार इसी दुर्ग में है।
- रानी उमादे (वास्तविक नाम उम्रादे भटियाणी)(रुठी रानी) जोधपुर शासक मालदेव की पत्नी थी, जिसने अंतिम दिनों में अपना जीवन इसी दुर्ग में बिताया था।
- राव मालदेव ने अजयमेरु दुर्ग में किले के ऊपर अरहठ से पानी पहुँचाने का प्रबन्ध किया था।
- हफ्ज जमाल (शीरचश्म):-शेरशाह सूरी ने पानी की व्यवस्था के लिए बनाया
- चौहान शासक अजयराज ने 1113 ई. में अजमेर शहर की स्थापना की इसी दुर्ग की तलहटी में
- हरबिलास शारदा (अखबार-उल-अखयार) ने इस दुर्ग को भारत का प्रथम गिर दुर्ग कहा है
- 1832 में इसे सैनिकों के लिए आरोग्य सदन में परिवर्तित करा दिया था अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंक ने
- पृथ्वीराज स्मारक (पृथ्वीराज चौहान की घोड़ी पर सवार प्रतिमा है) :-तारागढ़ पहाड़ी पर राज्य सरकार ने स्थापित किया है
9.तारागढ़ दुर्ग (बूंदी) :-
- गिरि दुर्ग ।
- यह दुर्ग धरती से आकाश के तारे के समान दिखलाई पड़ता है इस इस कारण इस दुर्ग का नाम तारागढ़ पड़ा।
- निर्माण :-राव बरसि हं हाड़ा/देवसिंह हाड़ा द्वारा 1354 ई. में।
- लगभग 1426 फीट ऊँचे पर्वत शिखर पर निर्मित।
- किले के बाहरी दीवार का निर्माण 18वीं सदी में फौजदार दलील ने करवाया था।
- गर्भ गुंजन तोप इसी दुर्ग में है। 16वीं सदी में एक ऊँची भीमबुर्ज का निर्माण इस शक्तिशाली तोप को रखने हेतु करवाया था
- कर्नल जेम्स टॉड ने बूंदी के राजमहलों को राजस्थान के सभी राजप्रासादों में सर्वश्रेष्ठ बताया है।
- दुर्ग में स्थित महल :-छत्र-महल, अनि रुद्ध महल, रतन-महल, बादल-महल, फूल महल,जीवरक्खा महल, दीवान ए आम , सिलहखाना , नौबत खाना , दूधा महल ।भीम बुर्ज और रानी जी की बावड़ी (राव अनिरूद्ध सिंह द्वारा 1699 ई. में निर्मित) इस दुर्ग मे स्थित हैं
- तारागढ दुर्ग (बूंदी) भित्ति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध किया जाता है।
- प्रवेश द्वार :- गणेश पोल,हाथी पोल, हजारी पोल, पाटन पोल, भैरव पोल एवं चौगान पोल ,शकल बारी दरवाजा।
- मेवाड़ महाराणा राणा लाखा ने इस दुर्ग को जीतने की प्रतिज्ञा पूर्ण न करने पर मिट्टी का नकली दुर्ग बनाकर उसे ध्वस्त करके अपनी कसम पूरी की।
- हाड़ा राजपूतों के शौर्य एवं वीरता की प्रतीक।
- यहाँ 84 खम्भों की छतरी, शिकार बर्जु , फूलसागर, जेत सागर और नवलसागर सरोवर,रानी महल नामक तालाब बूंदी के वभैव को दर्शात हैं।
- महाराव उम्मेदसि हं के काल में निर्मित चित्रशाला (रंगविलास) बूंदी चित्रशाला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- बूंदी दुर्ग की प्राचीर (शहरपनाह) का निर्माण राव बद्ु धसि हं ने सन 1700 ई. के लगभग करवाया।
- इतिहासकार किप्ल्रिन के अनुसार इस किले का निर्माण भूत-प्रेत व आत्माओं द्वारा किया गया
10.भटनेर का किला :-
- घग्घर नदी के मुहाने पर हनुमानगढ़ में स्थित धान्वन दुर्ग।
- निर्माता :-भूपत भाटी द्वारा तीसरी शताब्दी में। (285-295 ई.)|मुख्य शिल्पी केकेया था |
- दिल्ली-मुल्तान मार्ग पर स्थित।
- उपनाम :-उत्तरी सीमा का प्रहरी/रक्षक
- 1001 में महमूद गजनवी ने इस पर अधिकार कर लिया।
- 1398 ई. में तैमूर लंग ने राव दूलचन्द भाटी को परास्त कर इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
- यह दुर्ग 52 बीघा भूमि पर निर्मित है।
- 6380 कंगूरों के लिए प्रसिद्ध है।
- इस दुर्ग में 52 वि शाल बुर्ज हैं।
- किले का निर्माण पकी हुई ईटों और चूने से हुआ था।
- सर्वाधिक विदेशी आक्रमण सहने वाला दुर्ग।
- तैमूर के आक्रमण के समय यहाँ हिन्दू स्त्रियों के साथ-साथ मुस्लि म महि लाओं द्वारा भी जौहर किया गया था(1398 में तैमूरलंग ने राव दूलचन्द भाटी को हराकर इस पर अधिकार कर लिया था)।
- तैमूर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-तैमूरी में इस दुर्ग की प्रशंसा में लिखा है कि उसने इतना सुरक्षित व मजबूत दुर्ग पूरे हिन्दुस्तान में कहीं नहीं देखा।
- दुर्ग में गोरखनाथ का मंदिर है ।
- पुनर्निर्माण :-राजा अभयराव भाटी द्वारा।
- बीकानेर के राजा सूरतसि हं द्वारा सन 1805 में मगंलवार के दिन इस किले को फतह करने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रख दिया।
- ह्रमायू के भाई कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया।
- 13 वीं शताब्दी के मध्य में गुलाम वंश के सुल्तान बलवन के शासनकाल में उसका चचेरा भाई शेर खां यहां का हाकिम था। इस दुर्ग में बलबन के किलेदार शेरखाँ की कब्र है।
- भटनेर दुर्ग में एक प्रवेश द्वार पर एक राजा (महाराजा दलपत सिंह)के साथ 6 नारीयों/रानियों(जो दलपत सिंह की मृत्यु पर भटनेर में सती हो गई थी) की आकृतियाँ बनी हैं।
11.बाला किला(अलवर) :-
•चतुर्भुजा देवी मंदिर,सीताराम जी का मंदिर,निकुंभ महल इस किले में है
•निर्माण :- 1049 ई. में अलघुराय द्वारा।
•इस दुर्ग के नीचे एक नगर ‘अलपुर’ बसाया गया।
•मुगल शासक बाबर ने इस दुर्ग में कुछ दिनों तक विश्राम किया।
•सलीमशाह (शेरशाह का उत्तराधिकारी) के काल में यहाँ सलीम सागर जलाशय बनाया गया।
•औरंगजेब ने यह दुर्ग आमेर के मिर्जा राजा जयसि हं को दे दि या था।
•1775 ई. में अलवर महाराजा राव प्रतापसि हं ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
•उपनाम :-आँख वाला किला, बावनगढ़ का लाड़ला।
•अलवर दुर्ग की प्राचीर 6 मील लम्बी है।
•किले में प्रमुख बुर्ज :-नौगजा बुर्ज, काबुल एवं खुद बुर्ज, बंगला बुर्ज।
•प्रवेश द्वार :-चाँद पोल, सूरज पोल, कृष्ण पोल, लक्ष्मण पोल, जय पोल।
•जल के मुख्य स्रोत :-सलीम सागर तालाब एवं सूरज कुण्ड,सूरज महल।
•बंगला बुर्ज के निर्माता :-महाराजा शिवदान सि हं ।
•सलीम सागर जलाशय का निर्माण चाँद काजी द्वारा करवाया गया।
12.सिवाणा दुर्ग :-
- वन,गिरि दुर्ग, सहाय दुर्ग, कुमट दुर्ग(कुमट झाड़ी की अधिकता के कारण इसे कुमट दुर्ग भी कहते है)।
- निर्माण :-परमार शासक वीर नारायण पंवार(राजा भोज के पुत्र) द्वारा।
- समय :-954 ई. में (10वीं सदी)।
- स्थान :-बाड़मेर जिले के सिवाना कस्बे (छप्पन की पहाडि़यों) में स्थित।
- यह दुर्ग हल्देश्वर पहाड़ी पर स्थित है।
- प्रारम्भिक नाम :-कुम्थाना,जालौर के दुर्ग की कुंजी ।
- दुर्ग में 2 साके हुए –प्रथम साका :-1308 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय। उस समय दुर्ग का रक्षक सातलदेव सोनगरा (शीतलदेव चौहान शासक) था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा दुर्ग का नाम खैराबाद रखा था।
- द्वितीय साका :-
- अकबर ने मोटा राजा उदयसि हं के नेतत्व में सिवाणा शासक वीर कल्ला रायमलोत पर आक्रमण किया। वीर कल्ला वीर गति को प्राप्त हुए तथा हाड़ी रानी ने सभी स्त्रियों के साथ जौहर किया।
- राव मालदेव ने गिरि सुमेल युद्ध (1544 ई.) के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा कि ये जाने पर सिवाणा दुर्ग में पश्रय लिया था।
- जोधपुर शासकों की संकटकाल में शरणस्थली के रूप में प्रसिद्ध दुर्ग।
- ‘शेर-ए-राजस्थान’ नाम से विख्यात जयनारायण व्यास को राज्य के सिवाणा दुर्ग में बंदी बनाकर रखा गया।
- भांडेलाव :-दुर्ग में अवस्थित प्रसिद्ध तालाब।
13.नाहरगढ़ दुर्ग :- जयपुर
•निर्माण :-1734 ई. में सवाई जयसि हं द्वारा।
•उपनाम :-सुदर्शनगढ़(किले के भीतर विद्यमान सुदर्शन कृष्ण मंदिर दुर्ग )/सुलक्षणगढ़,जयपुर की ओर झांकता हुआ किला
•आकार :-जयपुर के मुकुट के समान।
•इस दुर्ग में महाराजा माधोसि हं द्वितीय ने अपनी 9 पासवानों हेतु एक जैसे 9 महल बनवाये।
•9 महल :-सूरज प्रकाश, खुशहाल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललि त प्रकाश, आनन्द प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, चाँद प्रकाश, रत्न/फूलप्रकाश और बसन्त प्रकाश।
•महाराजा जगतसि हं की प्रेमि का रसकरूप कुछ समय तक इसी किले में कैद करके रखी गई थी।
•नामकरण :-नाहरसि हं भोमिया के नाम पर।
- इस दुर्ग के पास जैविक उद्यान स्थित है।
- लोकदेवता नाहरसिंह भोमियाजी का स्थान किले की प्राचीर में प्रवेश द्वार के निकट बना हुआ है ।
- माधवेन्द्र पैलेस:-सवाई माधोसिंह ने रानियों हेतु निर्माण करवाया
- 1857 की क्रांति के समय महाराजा रामसिंह ने ब्रिटिश रेजिमेंट की पत्नी व अन्य यूरोपीय लोगों को नाहरगढ़ दुर्ग में सुरक्षा की थी
- दुर्ग के अन्य भवन :- हवा मंदिर, महाराजा माधोसिंह का अतिथिग्रह , सिलहखाना ।
13.लौहागढ़ दुर्ग :-
- राजेश्वरी माता भरतपुर के जाट वंश की कुलदेवी है। भरतपुर में स्थित पारिख व भूमि दुर्ग है लौहागढ़ दुर्ग।
- प्रमुख इमारतें – रानी किशोरी और रानी लक्ष्मी के महल , गंगा मंदिर, राजेश्वरी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, बिहारी जी का मंदिर एवं जामा मस्जिद ।
- निर्माण :-1733 ई. में जाट राजा सूरजमल द्वारा।
- पत्थर की पक्की प्राचीर से घिरा दुर्ग।
- इस दुर्ग के चारों और गहरी खाई है जिसमें मोती झील से सुजान गंगा नहर द्वारा पानी लाया गया है रूपारेल व बाण गंगा नदियों के जल को रोककर।
- इस दुर्ग के प्रवेश द्वार गोपालगढ़ में पर लगा हुआ अष्टधातु दरवाजा है, जिसे महाराजा जवाहरसि हं 1765 ई. में दिल्ली में मुगलों से जीतने के बाद लाल कि ले से लाए थे। गोपालगढ़ में
- मिट्टी से बना दुर्ग अपनी अजेयता के लिए प्रसिद्ध है। इस किले को अंग्रेज व मुगल नहीं जीत पाये।
- लॉर्ड लेक ने इस दुर्ग को जीतने का पाँच बार असफल प्रयास कि या। सन् 1805 ई. में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने इस दुर्ग को बारूद से उडाना चाहा लेकिन असफल रहा इसीलिए इस दुर्ग को ‘लॉर्ड लेक का वाटरलू’ कहा जाता है
- दुर्ग में मोती महल,महलखास, कोठीखास, किशोरी महल, सिलह खाना, दरबार खास ,कचहरी कलां आदि प्रमुख महल हैं।
- 18 मार्च, 1948 को मत्स्य संघ का उद्घाटन इसी दुर्ग में हुआ था।
- किले में 8 बुर्ज हैं, जिसमें जवाहर बुर्ज(महाराजा जवाहरसिंह की दिल्ली विजय के स्मारक के रूप में) एवं फतेह बुर्ज(महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों पर इस विजय के उपलक्ष्य में 1806 में) प्रमुख हैं।
- मैदानी दुर्गों की श्रेणी में विश्व का सर्वश्रेष्ठ दुर्ग।
14.मांडलगढ़ दुर्ग :-
- भीलवाड़ा में गिरि दुर्ग
- यह दुर्ग बनास, बेड़च एवं मेनाल नदि यों के त्रिवेणी संगम के समीप स्थि त है।
- शगिंृ /श्रृंगी ऋषि अभिलेख के अनुसार मडंलाकृति (कटोरेनुमा) का होने के कारण इसका नाम मांडलगढ़ पड़ा।
- नामकरण :-माण्डिया भील के नाम पर। 12वीं सदी में निर्मित(पुन : निर्माण महाराणा कुम्भा)।
- बीजासण का पहाड़ दुर्ग के समीप ही स्थित है।
- दुर्ग के अंदर दो कुण्डेश्वर व जालेश्वर महादेव मंदिर, ऋषभदेव जैन मंदिर, सागर एवं सागरी जलाशय, जालेसर एवं देवसागर तालाब स्थित है।
- 1576 ई. में हल्दीघाटी युद्ध से पर्वू लगभग एक माह तक कँु वर मानसि हं इस दुर्ग में रहे।
15.जयगढ़ दुर्ग :- गिरि दुर्ग।
- निर्माण :-मिर्जा राजा जयसि हं प्रथम द्वारा(डॉ. गोपीनाथ शर्मा व जगदीश सिंह गहलोत के अनुसार)।
- परिवर्द्धनकर्ता :-सवाई जयसि हं द्वितीय (महलों का निर्माण)।
- निर्माण :- आमेर दुर्ग व महल परिसर की सुरक्षा हेतु व आमेर के राजा मानसिंह प्रथम द्वारा लाए हुए खजाने को रखने के लिए करवाया गया
- स्थान :-चिल्ह का टीला नामक पहाड़ी (जयपुर) में मावठा झील के ऊपर ।
- प्रवेश द्वार :-डूंगर दरवाजा(नाहरगढ़ की तरफ), अवनि दरवाजा(आमेर महल की तरफ) एवं भैरु दरवाजा।
- उपनाम :-रहस्यमयी दुर्ग, संकटमोचक दुर्ग, चिल्ह का टीला दुर्ग।
- यहाँ कच्छवाहा राजाओं का राजकोष रखा हुआ था, श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गुप्त खजाने के लिए खुदाई की गई।
- इसका निर्माण प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र के निर्धारित मानकों के अनुसार किया गया है।
- इस दुर्ग के प्रमुख भवनों में जलेब चौक, सुभट निवास, खिलबत निवास, लक्ष्मी निवास, ललित मंदि र, आराम मंदिर,विलास मंदिर, सूर्य मंदिर , राणावत जी का चौंक आदि हैं।
- विजयगढ़ी :-किले में स्थित लघु दुर्ग जहाँ महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजय सिंह को कैद में रखा था।
- दिया बुर्ज :-सबसे ऊँचा बुर्ज (7 मंजिला)।
- जयगढ़ दुर्ग अपनी पानी के टांको के लिए भी प्रसिद्ध है
- जयबाण :-1720 ई. में महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा इसी कारखाने में निर्मित एशिया की सबसे बड़ी तोप।
- जयबाण तोप की मारक क्षमता :-32 कि लोमीटर
- जयगढ़ दुर्ग भारत का एकमात्र दुर्ग है, जहाँ तोप ढालने का संयंत्र लगा हुआ है।
- बादली, बजरंगबण मचवान :-इस दुर्ग में निर्मि त तोपें।
- इस किले में कठपुतलीघर स्थित है।
- शांति काल में यह दुर्ग विशिष्ट राजनीतिक बंदियों के लिए कैदखाने के रूप में काम आता है।
16.दौसा किला :-
- दौसा जिले में देव गिरि पहाड़ी पर गुर्जर-प्रति हारों (बड़गुर्जरों) द्वारा निर्मित गिरि दुर्ग।
- आकार :-छाजले/सूप के समान।
- 11वीं सदी में कच्छवाहों ने यह दुर्ग बड़गुजरों से छीन लिया (कछवाहा वंश की प्रथम राजधानी)।
- दुर्ग प्रवे द्वार :-हाथी पोल एवं मोरी दरवाजा।
- दुर्ग का निचला भाग दोहरे परकोटे से आबद्ध है।
- दुर्ग में प्रसिद्ध बैजनाथ महादेव मंदिर ,नीलकंठ महादेव का मंदिर ,राजाजी का कुआँ है।इस दुर्ग में ’14 राजाओं की साल’ है।
- दादूपंथी सन्त सुन्दरदास जी का जन्म स्थान माना जाता है।
17.अचलगढ़ दुर्ग/आबु का किला(सिरोही) :-
- परमार शासकों द्वारा 9वीं सदी में आबू (सिरोही) में निर्मित गिरि दुर्ग।
- कर्नल टॉड ने माउण्ट आबू को ‘हिन्दू ओलम्पस’ (देव पर्वत) कहा है।आबू पर्वतांचल में स्थित अनेक देव मंदिरों के कारण आबू पर्वत को हिन्दू ओलम्पस (देव पर्वत) कहा जाता है।
- परमारों की राजधानी :-चन्द्रावती
- 1452 ई. में महाराणा कुम्भा द्वारा पुनर्निर्माण।
- प्रवेश द्वार :-हनुमान पोल, गणेश पोल, चम्पा पोल, भैरव पोल।
- दुर्ग में दर्शनीय स्थल :-अचलेश्वर महादेव मंदिर(शिवजी के पैर का अंगूठा प्रतीक के रूप में विद्यमान है।), चामुंडा मंदिर, शांतिनाथ जैन मंदिर, गौमुख जी के मंदिर (सर्वधातु की 14 मूर्तियां अवस्थित है यहाँ),रेवती कुंड, गोमती कुंड, भृगु आश्रम, मन्दाकिनी कुण्ड, सावन-भादो झील, कफूर सागर सरोवर,ओखा रानी का महल आदि ।
- •‘भंवराथल’ नामक स्थान का सम्बन्ध इसी दुर्ग से है जहाँ आक्रमणकारी महमूद बेगड़ा एवं उसके सैनि कों पर मधुमक्खियों ने आक्रमण कर दिया था।गुजरात का महमूद बेगडा जब अचलेश्वर के नदी व अन्य देव प्रतिमाओं को खण्डित कर लौट रहा था तब मक्खियों न आक्रमणकारियों पर हमला कर दिया
- प्रवेश द्वार :-हनुमान पोल, गणेश पोल, चंपापोल एवं भैंरवपोल
- इस दुर्ग के पास ही भरथरी की गुफाएँ हैं।
18.जाबालिपुर/स्वर्णगिरी/जालौर दुर्ग :-
- जालौर (सोन पहाडी पर स्थित दुर्ग)में स्थित गिरि दुर्ग।
- इसका निर्माण सूकड़ी नदी के किनारे गुर्जर नरेश नागभट्ट प्रथम ने करवाया था।
- अन्य नाम :-सोनगिरी, कनकाचल, जलालाबाद, जाबालिपुर,सोनगढ़,जालहुर,मारवाड़ के राजाओं का आश्रय स्थल।
- जालौर दुर्ग के तोपखाने में परमार शासक वीसल का शिलालेख प्राप्त हुआ, जिसमें उसकी रानी मेलरदेवी द्वारा सन 1118 ई. में सिंधू राजेश्वर मदिंर में स्वर्ण कलश चढ़ाये जाने का वर्णन भी है।
- प्रतिहार नरेश वत्सराज के शासनकाल में 778 ई. में जैन आचार्य उद्योतन सूरि ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ कुवलयमाला की रचना की।
- चौहानों की जालौर शाखा का संस्थापक :-कीर्तिपाल।
- सुंधा पर्वत अभिलेख में कीर्ति पाल के लिए ‘राजेश्वर’ शब्द का प्रयोग हुआ।
- शाका/साका :-अलाउद्दीन खिलजी ने कान्हड़देव के समय 1311-12 ई. में जालौर पर आक्रमण कर इस दुर्ग का नाम ‘जलालाबाद’ रख दि या।
- 1311 ई. में इस दुर्ग का पतन बीका नामक दहिया राजपूत की गद्दारी से हुआ था।
- इस साके की जानकारी पद्मनाभ द्वारा रचित कान्हडदेव में मिलती है।
- इस दुर्ग में संत मलिक शाह की दरगाह, परमार कालीन कीर्ति स्तम्भ, ‘स्वर्णगिरि ’ मंदिर (जैन मंदिर), तोपखाना मस्जिद, आशापुरा माता का मंदिर एवं चामुंडा माता एवं जोग माता के मंदिर , दहियों की पोल ,वीरमदेव की चौकी ,झालर और सोहन बावड़ी महाराजा मानसिंह के महल,प्रमुख है।
- दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार ‘सूरजपोल’ है जो धनुषाकार छत से ढका हुआ है । दुर्ग का दूसरा प्रवेश द्वार ध्रुवपोल, तीसरा चाँदपोल एवं चौथा सिरेपोल है ।
- स्वतंत्रता आन्दोलन के समय मथुरादास माथुर, गणेशीलाल व्यास, फतहराज जोशी जैसे नेताओं को किले में नजरबंद रखा गया।
- किले में बनी तोपखाना मस्जिद पूर्व में परमार शासक भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी।
- किले के भीतर जाबलिकुंड , सोहनबाव आदि जलकुंड है ।
18.जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर) :-
- धान्वन दुर्ग, भूमि दुर्ग एवं पारिख दुर्ग।
- बीकानेर के किले की नींव राव बीकाजी द्वारा 1485 में रखी गई और एक छोटी किले का निर्माण करवाया जो एक चट्टान पर स्थित है जो ‘बीकाजी का टेकरी’ कहलाती है ।वर्तमान किले ‘जूनागढ़’ की निर्माण 1589 ई. में महाराजा रायसि हं ने इस दुर्ग की नींव रखी, जो 1594 में बनकर पर्णू हुआ।
- आकृति :-चतुष्कोण या चतुर्भुजाकृति ।
- लाल पत्थरों से निर्मित होने के कारण ‘लालगढ़’ भी कहा जाता है।
- प्रवेश द्वार :-बाहरी :- कर्णपोल एवं चाँदपोल।
- भीतरी :- दौलत पोल, फतेह पोल, रतन पोल, सूरज पोल एवं ध्रुव पोल।
- सूरज पोल पर राजा रायसि हं की प्रशस्ति उत्कीर्ण है। (प्रशस्ति रचयिता जैइता मुनि)
- सूरजपोल दरवाजे के दोनों तरफ 1567 ई. के चित्तौड़ साके में वीरगति पाने वाले जयमल मेड़तिया व उसके बहनोई आमेर के राव फत्ता (पता) सिसोदि या की गजारुढ़ मूर्तियाँ स्थापित हैं।
- दुर्ग की प्राचीर बहुत सुदृढ़ है तथा उनमें 37 बुर्जे बनी हुई हैं।
- राजपूत एवं मुगल स्थापत्य शैली का समन्वय है।
- उपनाम :-जमीन का जेवर ,लालगढ़ दुर्ग, रातीघाटी का किला,अधगढ़ किला।
- दुर्ग के अनूपमहल(महाराजा अनूपसिंह) में शासकों का राजतिलक होता था।
- दुर्ग के दर्शनीय स्थल :-अनूप संग्रहालय, फूल महल(रायसिंह द्वारा), चन्द्र महल(रायसिंह द्वारा), सरदार निवास महल,लाल निवास, मोती महल,छत्र महल, गंगानिवास, अनूप महल,दलेल निवास(महाराजा गंगासिंह), रतन निवास,बादल महल(महाराजा गजसिंह) , चीनी बुर्ज, सुनहरी बुर्ज, विक्रम विलास , सूरत निवास,शीश महल(महाराजा गजसिंह),कर्णमहल /दरबार हॉल (निर्माण अनूप सिंह द्वारा अपने पिता के नाम पर) ,उष्ट्र शाला (शूतर खाना),हिण्डोला।
- दुर्ग में दो कुएँ :-रामसर एवं रानीसर।
- दुर्ग के भीतर 33 करोड़ देवी-देवताओं का मदिंर हैं, जिसमें शेर पर सवार गणपति (हेरंब गणपति ) की दर्लुभ प्रतिमा, गज मंदिर है।
- राजस्थान में पहली बार लिफ्ट इसी दुर्ग में लगाई थी।
- जूनागढ़ दुर्ग के सम्बन्ध में दीनानाथ दुबे की उक्ति – ‘दीवारों के भी कान होते है पर जूनागढ़ के महलों की दीवारें तो बोलती हैं।’
- यह दुर्ग वास्तव में आगरा के दुर्ग से मिलता-जुलता है।
19. भैसरोड़गढ़ दुर्ग :- जल दुर्ग
•चित्तौड़गढ़ में चम्बल और बामनी नदियों के संगम पर स्थित।
•निर्माता :-भैंसाशाह नामक व्यापारी तथा रोड़ा चारण द्वारा।
•उपनाम :-राजस्थान का वैल्लोर।
•कर्नल टॉड ने इसे “व्यापारिक काफिलों के सुरक्षार्थ उपयोग ” तथा ‘अभेध दुर्ग’ कहा है।
20.नागौर दुर्ग :- धान्वन दुर्ग व स्थल दुर्ग।
•निर्माण :-वि .स. 1211 में कैमास (चौहान शासक सोमेश्वर का सामन्त) द्वारा | जीर्णोद्धार :-जोधपुर के राजकुमार बख्तसिंह ने |
•उपनाम :-अहिच्छत्रपुर दुर्ग, नागदुर्ग,नागाणा,नागडर ।
•दुर्ग में सिराई पोल, बिचलि पोल, कचहरी पोल, सूरज पोल, धूपी पोल व राज पोल नामक 6 दरवाजे हैं। दुर्ग में दूसरे एवं तीसरे प्रवेश द्वार के बीच का भाग ‘घूघस’ कहलाता है ।
•सुदृढ़ प्राचीर एवं जल परिखा इस दुर्ग की महत्वपूर्ण सामरिक विशेषता थी।
•1570 ई. में अकबर अजमेर में ख्वाजा साहब की जियारत करने के बाद नागौर आया तथा यहाँ पर लगभग दो महीने रहा। 1570 में इसी दुर्ग में नागौर दरबार लगाया था | उसने यहाँ एक तालाब खुदवाया जिसका नाम शुक्र तालाब था तथा अकबरी मस्जिद का निर्माण करवाया।
•नागाैर का दुर्ग वीर शिरोमणि अमरसि हं राठौड़ के शौर्य एव स्वाभि मान के लिए प्रसिद्ध है।
•अकबर ने इस दुर्ग को बीकानेर शासक रायसि हं को सौंपा।
•नागौर दुर्ग दुहरे 5000 फीट लंबा परकोटे से आबद्ध हैं जिसमें 28 वि शाल बुर्जे हैं।
•दुर्ग के भीतर बादल महल एवं शीश महल में सुन्दर भित्ति चित्र बने हैं।
•नागौर के दुर्ग की मुख्य विशेषता यह है कि इसके बाहर से चलाये गये तोपों के गोले किले के महलों को क्षति पहुँचाये बिना ही ऊपर से निकल जाते हैं।
•इस दुर्ग में वीर अमरसि हं राठौड़ की छतरी, तारकीन की दरगाह, ज्ञानी तालाब, वशंवाला /वंशवाला का मदिंर, वरमाया का मंदिर, अन्न गोदाम,बादल महल/आभा महल ,मोती महल (हाड़ी रानी का महल) , शीश महल (अकबरी महल) तथा पट्टरानियों का महल आदि ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमुख हैं।
- नागौर दुर्ग को 2007 में यूनेस्को द्वारा साफ सफाई के लिए ‘अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया
- नागौर किले में बावड़ी से पानी को महल की भीतरी भागों तक ले जाने की व्यवस्था ‘ग्रीक’ शैली पर आधारित की गई
21.चूरू का किला :-
•निर्माता :-1739 ई. में ठाकुर कुशालसि हं
•दुर्ग में गोपीनाथ मंदिर है।
•ठाकुर :- शिवसि हं अपनी आजादी व अस्मिता के लिए इस दुर्ग में ठाकुरों ने गोले-बारुद खत्म होने पर दुश्मनों(बीकानेर की सेना,अंग्रेजों) पर चाँदी के गोले दागे।
22. शेरगढ़ दुर्ग (धौलपुर) :- गिरि दुर्ग
•जोधपुर के राव मालदेव द्वारा निर्मित। शेरशाह सूरी ने इस दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा।।
•जीर्णो द्धार :-शेरशाह सूरी द्वारा(यह किला “दक्खिन का द्वार गढ” नाम से प्रसिद्ध है)
•यह साम्प्रदायि क सद्भाव का जीता जागता नमूना है जिसमें एक तरफ सद्दीक खाँ का मकबरा तथा दूसरी तरफ हनुमानजी का मन्दिर है।
•सैय्यद की मजार इसी दुर्ग में है। (शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित)
•यह दुर्ग 1804 ई. से 1811 ई. की अवधि में धौलपुर के प्रथम राजा शासक कीरतसि हं की राजधानी रहा था।
•अष्टधातु की वि शाल हुनहुंकार (महाराजा कीरतसिंह द्वारा निर्मित “हुनहुंकार तोप” तोप इसी दुर्ग में है।
23. शेरगढ़ दुर्ग :- बारां
•यह गिरि व जल दुर्ग है।
•अटरू तहसील(बारां) में परवन नदी के किनारे
•उपनाम :-कोषवर्द्धन दुर्ग, दक्षिण का द्वार।
•कोषवर्द्धन पर्वत शिखर पर अवस्थित।
•देवदत्त द्वारा दुर्ग के प्रवेश द्वार (बरखेड़ी दरवाजा) के पास उत्कीर्ण शिलालेख (वि.स. 847) से ज्ञात होता है कि यहाँ बिन्दुनाग, पद्मनाग, सर्वनाग तथा देवदत्त आदि नागवंशीय शासकों ने शासन किया।उस समय इसका नाम कोशवर्धन था। बाद में शेरशाह सूरी के नाम पर इसका नाम शेरगढ़ हुआ।
•देवदत्त(सर्वनाम व उसकी रानी श्रीदेवी के पुत्र) ने दुर्ग के पास ही एक बौद्ध मठ एवं बौद्ध विहार (राजस्थान का एकमात्र दुर्ग जहाँ बौद्ध मठ है ) बनवाया था।
•इस दुर्ग में झाला जालिमसि हं ने शरेगढ़ का जीर्णो द्धार करवाया तथा ‘झालाओ की हवेली’ भवन का निर्माण कि या।
•इस दुर्ग में सोमनाथ मंदिर, चारभुजा मंदिर, भव्य राजा प्रसाद, झालाओं की हवेली, अमीर खाँ महल आदि दर्शनीय स्थल हैं।
•अमीर खाँ पिंडारी ने अंग्रेजों के खौफ से शेरगढ़ दुर्ग में शरण ली
• यह दुर्ग प्राचीन जैन शिल्प कला के लिए विख्यात है
•2011 में यहां 2500 ईसा पूर्व की प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं ।
24 .मैगजीन/अकबर का किला(स्थल श्रेणी) :-
•अजमेर में मुगल शासक अकबर द्वारा 1571-72 ई. में निर्माण।
•अन्य नाम :-अकबर का दौलतखाना, मुगल किला।
•यह मुगलों द्वारा मुस्लिम-हिन्दू दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया गया राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है।
•1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध की अन्तिम योजना इसी दुर्ग में बनी थी।
•10 जनवरी, 1616 को इंग्लैण्ड सम्राट जेम्स प्रथम के दूत टॉमस रो ने इसी दुर्ग में बादशाह जहाँगीर से मुलाकात की थी एवं ईस्ट इंडिया कंपनी हेतु भारत में व्यापार की अनुमति प्राप्त की थी ।।
•1801 ई. में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना सिलहखाना /शस्त्रागार (मैगजीन) बना लिया।
•किला वर्गाकार व पश्चिमोन्मुखी है।
•अकबर के पुत्र दनियाल तथा शाहजहाँ के पुत्र शहजादा शुजा का जन्म इसी किले में हुआ।
•इस किले में राजकीय पुरातात्विक संग्रहालय (राजपुताना म्यूजियम) है।
•जीर्णोद्धार :-भारत के गवर्नर जनरल व वायसराय लॉर्ड कर्जन ने करवाया था 1905 में खाटू से प्राप्त पीले पत्थरों से|
25.बयाना दुर्ग (भरतपुर) :-
• गिरि व वन दुर्ग।
•यादव वंशी राजा विजयपाल ने यह दुर्ग भरतपुर में दमदमा पहाड़ी पर 1040 ई. के लगभग बनाया था।
•दुर्ग का अन्य नाम :-विजयमंदिरगढ़,शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपथ,भादानक(डॉ दशरथ शर्मा ने), बयाना व सुल्तानकोट (मुस्लिम ग्रंथों में )है।
•भीम लाट (उषा लाट) :-दुर्ग के भीतर लाल पत्थरों से निर्मित 8 मंजिला ऊँची लाट/स्तम्भ। इसे राजस्थान की कुतुबमीनार कहा जाता है। इसे महाराजा विष्णुवर्द्धन द्वारा बनवाया गया था।
•उषा मंदिर :-वि.स. 1012 ई. में रानी चित्रलेखा द्वारा निर्मित।इस मंदिर का मुख्य द्वार लाल पत्थरों का बना है।
•इस दुर्ग में समुद्रगुप्त द्वारा बनाया गया विजय स्तम्भ भी है।
•खानवा के युद्ध के बाद बाबर इसी दुर्ग में आया था।
•यहाँ लोदी मीनार, अकबर की छतरी, जहाँगीरी दरवाजा, सराय सादुल्ला (1565 ई. में निर्मित), दाउद खाँ की मीनार दर्शनीय है।
•राजस्थान का एकमात्र दुर्ग जिसमें सर्वाधिक कब्रे हैं।
•यह दुर्ग दिल्ली के सुल्तानों के युद्ध के संचालन व सैनिक विश्राम गृह का कार्य करता था।
•हुमायूँ के शासनकाल में उसके चचेरे भाई मुहम्मद जमान मिर्जा को इसी दुर्ग में कैद रखा गया।
26.खण्डार का किला :-
•सवाईमाधोपुर से लगभग 40 किमी. पूर्व में स्थित गिरि दुर्ग।इसके पूर्व में बनास व पश्चिम में गालंडी नदियाँ बहती है
•आकृति :-त्रिभुजाकार।
•यहाँ अष्टधातु निर्मित ‘शारदा तोप’ अपनी मारक क्षमता हेतु प्रसिद्ध है। यह रणथम्भौर के चाैहान वंशीय शासकों द्वारा 8वीं – 9वीं सदी में निर्मित दुर्ग है।
•इस दुर्ग का उपयोग मूलत: सैन्य साज-सज्जा, युद्ध अभियानों की तैयारी, सैनिक प्रशिक्षण तथा अन्य सैनिक गति विधियों के लिए किया जाता है।
•खंडार के किले को रणथम्भौर के सहायक दुर्ग व उसके पृष्ठ रक्षक के रूप में जाना जाता है ।
•दुर्ग में प्रमुख जलाशय :-सता कुण्ड, लक्ष्मण कुण्ड, बाण कुण्ड, झिरी कुण्ड आदि ।
27. तिमनगढ़ (त्रिभुवनगढ़) करौली :-
•करौली में निर्मित गिरि दुर्ग।
•निर्माता :-तहणपाल/त्रिभुवनपाल(महाराजा विजयपाल के पुत्र) द्वारा 11वीं सदी में।
•मुस्लिम आधिपत्य के बाद इसका नाम इस्लामाबाद कर दिया गया था।
•त्रिभुवनगिरि पहाड़ी पर निर्मित।
•मुख्य प्रवेश द्वार :जगनपोल एवं सूर्यपोल।
•हसन निजामी द्वारा लिखित ‘ताज-उल-मिसिर’ तथा मिनहाज सिराज कृत ‘तबकाते नासिरी’ में तिमनगढ़ के ऊपर गौरी के अधिकार का उल्लेख हुआ है।
•दुर्ग में खास महल, ननद-भोजाई का कुआँ, राजगिरी, दुर्गा ध्यक्ष के महल आदि हैं।
•उपनाम :- त्रिपुरार नगरी,तवनगढ
•तिमनपाल के पुत्र धर्मपाल ने धौलदेहरा (धौलपुर) दुर्ग का ,तिमनपाल दूसरे पुत्र कुँवरपाल ने गोलारी में कुँवरगढ़ दुर्ग बनवाया
28.भोपालगढ़ दुर्ग (खेतड़ी झुंझनू) :-
•खेतड़ी में तत्कालीन ठाकुर भोपालसि हं द्वारा 1770 ई. में निर्मित।
•उपनाम :-खेतड़ी का हवा महल।
•यह दुर्ग संकीर्ण गलियारों के लिए प्रसिद्ध है।
29.बसन्तगढ़ दुर्ग सिरोही :-
•सिरोही जि ले में बसन्तगढ़ दुर्ग का निर्माण मेवाड़ महाराणा कुम्भा ने करवाया था।
•दुर्ग में सूर्य मन्दिर एवं दत्तात्रेय का मंदिर स्थित है।
•दुर्ग के प्राचीरों में सीमेन्ट या चूने का प्रयोग नहीं किया गया है।
•दुर्ग की पहाड़ी पर खींवल माता का मंदिर बना हुआ है।
30.भानगढ़ दुर्ग (अलवर) :-
•अजबगढ़ (अलवर) में स्थित।
•निर्माता :-माधोसि हं द्वारा 1631 ई. में।
•वर्तमान में ‘भूतहा किले’ के रूप में प्रसिद्ध है।
•यह दुर्ग सरिस्का अभयारण्य की सीमा के पास पहाड़ी पर स्थि त है।
•इस दुर्ग में मंगला माता मंदिर, केशव राय मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, भैरव गोपीनाथ, हनुमान मंदिर, सेवडे की छतरी सुरंग, गोमुख कुण्ड, बालकनाथ की धूनी,नटणी की हवेली, आदि वर्तमान में खण्डहरों के रूप में हैं।
31. नीमराणा किला अलवर:-
•‘पंचमहल’ के नाम से विख्यात गिरी दुर्ग।
•अलवर में 1464 ई. में चौहान शासकों के द्वारा निर्मित।
•वर्ष 2008 में ‘नीमराणा फोर्ट पैलेस’ में तब्दील।
32.नीलकण्ठ/राजोरगढ़ दुर्ग (अलवर) :-
•टहला कस्बा (अलवर) में स्थित दुर्ग।
•यहाँ 12वीं सदी तक बड़गूजर शासकों का अधिकार रहा।
•10वीं सदी में मंथन देव ने भव्य नीलकण्ठ महादेव मंदिर बनवाया। तभी से यह नगर नीलकंठ राजोरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
•नौगजा मंदिर :-जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्व नाथ का मंदिर।
•अन्य नाम :-नीलकण्ठ दुर्ग,पारानगर ।
•इस दुर्ग का उपयोग मुख्य रूप से सैनिक कार्यों व युद्ध अभियानों हेतु होता था।
33.कांकणवाड़ी का दुर्ग अलवर :-
•गिरि व वन दुर्ग।
•अलवर के सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य के मध्य
•सघन और बीहड़ वन में स्थित।
•निर्माता :-महाराजा सवाई जयसिहं द्वारा।
•मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पराजित भाई दाराशिकोह को इसी दुर्ग में कैद रखा था।
•कांकणवाड़ी दुर्ग दूर से तो दिखाई देता है परन्तु पास जाने पर वृक्षों के झुरमुट में छिप जाता है।
•बारहदरी :-दुर्ग की ऊपरी मंजिल पर भित्तिचित्रों से अलंकृत बारहदरी
•निर्माण :-महाराजा सवाई जयसिंह (जयपुर) द्वारा (पायलेट गजट के अनुसार)
34.सोजत दुर्ग(पाली) :- गिरि दुर्ग।
•राव जोधा के पुत्र नीम्बा द्वारा 15वीं सदी में निर्मित। मेवाड़-मारवाड़ सीमा पर स्थित दुर्ग।
•जोधपुर शासक राव मालदेव ने इस दुर्ग के चारों ओर वि शाल एवं सुदृढ़ परकोटे का निर्माण करवाया।
•इस दुर्ग में राव मालदेव के पुत्र राम ने रामेलाव तालाब बनवाया।
•नानी सीरड़ी नामक डूँगरी पर सुकड़ी नदी के मुहाने पर स्थित दुर्ग।
•मुख्य भवन :- जनानी ड्योढ़ी, तबेला , दरीखाना
•महाराजा विजयसिंह ने एक अन्य पहाड़ी पर एक नया दुर्ग ‘नरसिंहगढ़’ बनवाया था
35.माधोराजपुरा का किला :- स्थल दुर्ग।
•जयपुर में फागी तहसील के माधोराजपुरा कस्बे में अवस्थित।
•निर्माता :-सवाई माधोसि हं प्रथम (मराठा विजय के उपलक्ष्य में निर्माण)।
•इस किले के साथ जयसिंह तृतीय के धाय माँ रूपा बढारण एवं अमीर खां पिण्डारी की बेगमों को बधंक बनाने तथा लदाणा के ठाकुर भरतसि हं नारुका की वीरता की रोमांचक दास्तान जुड़ी हुई है।
•चक्कीपाड़ा :- किले में गुंबद की आकृति का भवन
36.चौमू का किला :-
•जयपुर के चौमू कस्बे में अवस्थित भूमि दुर्ग।
•उपनाम- चैमूहांगढ़, धाराधारगढ़ तथा रधुनाथगढ।
•निर्माण :-ठाकुर कर्णसि हं द्वारा 1595-97 ई (बेणीदास नामक साध ु/संत के आशीर्वाद से)
•प्रवेश द्वार :-रावण दरवाजा, होली दरवाजा, बावड़ी दरवाजा, पीहाला दरवाजा।
•हवा मंदिर :-अतिथि गृह माधोसिंह ने बनाया
•देवी निवास :-जयपुर के अल्बर्ट हॉल की प्रतिकृति
•ठाकुर कृष्ण सिंह ने चतुर्दिक परकोटे का निर्माण करवाया (1798 ई.)
•परकोटे के प्रमुख चार दरवाजे :-बावड़ी दरवाजा , पीहाला दरवाजा, होली दरवाजा एवं रावण दरवाजा ।
•प्रमुख महल :-कृष्ण निवास,देवी निवास,रतन निवास, शीश महल, मोती महल
37.कोटा दुर्ग :-
•चम्बल नदी के किनारे स्थित जल दुर्ग।
•निर्माता :-माधोसि हं द्वारा।
•प्रवेश द्वार :-पाटन पोल, कैथूनी पोल, सूरज पोल, हाथी पोल एवं किशोरपुरा दरवाजा।
•महल :-जतैसि हं महल, कँवरपदा महल, केसर महल, अर्जुन महल, चन्द्र महल, हवा महल ,छत्तर महल, झाला जालिम सिंह की हवेली ,माधव सिंह महल।
•दुर्ग के भीतर ‘महाराजा माधवसि हं म्यजिूयम’ रियासतकालीन कला एव सस्ंकृति का अद्भतू खजाना है।
38.नाहरगढ़ दुर्ग :- बारां में।
•लाल पत्थरों से निर्मित।
•इसकी आकृति दिल्ली के लाल किले के समान है।
39.शाहबाद का किला :-
•बारां में मुकुन्दरा पर्वत श्रेणी की भामती पहाड़ी पर स्थित गिरि दुर्ग।
•प्रथम मान्यता के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण 9वीं सदी में परमार शासकों द्वारा किया गया था। जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार इस दुर्ग का निर्माता चौहान शासक मुकुटमणि देव था।
• इस दुर्ग में रखी ‘नवलबाणतोप’ दूर तक मार करने के कारण प्रसिद्ध है।
•कुण्डाखोह :-यह किला कुण्डाखोह नामक गहरे प्राकृतिक झरने से घिरा हुआ है ।
•इस दुर्ग का जिर्णोद्धार अफगान शासक शेरशाह सूरी करवाया गया कालिंजरा अभियान के दौरान।एवं किले का नाम सलीमाबाद करा। मुगलों के शासन काल में इस दुर्ग का नाम शाहबाद पड़ा ।
•चौहान राजा इंद्रमन ने बादल महल बनवाया था । बादल महल के दोनों दरवाजों के समीप अललपंख (दो पंख युक्त हाथी की प्रतिमाएँ) लगी हुई है ।
•शाहजहाँ ने यहाँ के अंतिम चौहान राजा इंद्रमन को हराकर दुर्ग पर मुगल सत्ता स्थापित किया
40.लक्ष्मणगढ़ दुर्ग :- सीकर।
•बेड़ (बेर) नामक पहाड़ी में यह किला स्थित है
•निर्माण :-रावराजा लक्ष्मण सिंह ने 1805 में करवाया
•यह दुर्ग केवल बुर्जों से बना है (दीवार से नहीं बना)
41.भूमगढ़/असीरगढ़/भोमगढ़ दुर्ग :-
•टोंक में 17वीं सदी में ब्राह्मण भोला द्वारा निर्मित। पुनरूद्धार :-टोंक के नवाब अमीर खाँ पिंडारी
•उपनाम :-दक्खन की चाबी।
42.कुचामन दुर्ग :-गिरि दुर्ग ।
•जालिम सि हं द्वारा कुचामन (नागौर) में इस दुर्ग की नींव रखी गई।
•उपनाम :-जागीरी किलों का सिरमौर,अणखला किला( कारण इस किले का कभी शत्रु सेना के सामने पतन नहीं हुआ )।
43.फतेहपुर दुर्ग :-सीकर
•धान्वन व भूमि दुर्ग।
•शेखावाटियों का सबसे महत्वपूर्ण दुर्ग।
•निर्माता :-•1453 ई. में फतन खाँ कायमखानी द्वारा।
•दुर्ग के भीतर ‘तेलिन का महल’(हिंदू मुस्लिम स्थापत्य शैली में निर्मित)बड़ा प्रसिद्ध है।
44.सज्जनगढ़ दुर्ग :-
•उदयपुर की बांसदरा पहाड़ियों पर निर्मित।
•निर्माता :-गिरि दुर्ग। महाराणा सज्जनसि हं द्वारा
•उपानाम :-उदयपुर का मुकुटमणि ।
•दुर्ग में महाराणा सज्जनसि हं द्वारा 1881 ई. में वाणी विलास पैलेस/सज्जनगढ़ पैलेस एव गुलाबबाड़ी का निर्माण करवाया।
45. टॉडगढ़/बोराड़वाड़ा दुर्ग :-
•अजमेर में कर्नल जेम्स टॉड द्वारा निर्मित।
•टॉडगढ़ दुर्ग में गोपाल खरवा ,विजयपथिक को नजरबंद रखा गया था
46.करणसर दुर्ग :-
•जयपुर में चार बुर्जों वाला किला।
•निर्माता :-बहादरु सि हं राणावत
47.गीजगढ़ दुर्ग :-
•दौसा में।
•गीजगढ़ चम्पावतों की जागीर का ठिकाना था। यह किला नाव या जहाज की आकृति नुमा स्वरूप में निर्मित है।
48.उटगिरी का किला :-
•कल्याणपुर (करौली) के पास स्थित
•दुर्ग का मुख्य द्वार :-इमली पोल।दुर्ग के पुर्व में देवगिरी का प्राचीन किला(यादवों का दुर्ग) स्थित है
•निर्माता :-लोधी राजपूत। पर वीर विनोद के अनुसार इसका निर्माण महाराजा हरबक्षपाल ने करवाया
•अन्य नाम :-उदित नगर दुर्ग,उटनगर , अवन्तगढ़,अनुवन्तगढ़ ।
49.वैरगढ़ दुर्ग :- भरतपुर में।
•निर्माता :-प्रतापसि हं(सूरजमल के भाई ) (1726 ई. में)
50.मंडरायल दुर्ग :-
•करौली में चम्बल नदी के तट पर एक ऊँची पहाड़ी पर लाल पत्थरों से निर्मित दुर्ग।
•उपनाम :-ग्वालियर दुर्ग की चाबी( ग्वालियर दुर्ग की कुंजी)।
•मंडरायल दुर्ग मर्दान शाह की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है।
•जागाओं की पोथी में लिखे लेख के अनुसार बयाना के महाराजा विजयपाल के पुत्र मदनपाल/मण्डपाल ने मंडरायल दुर्ग का निर्माण सवनत 1184 के लगभग कराया था।
•यह वन प्रदेश का पहाड़ी दुर्ग है
•किले के दो द्वार थे :-
•सूरजपोल मुख्य द्वार था। यह द्वार इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि इसमें सुबह से शाम तक सूर्य का प्रकाश देखा जा सकता है। इसी दरवाजे की तराई में मंडरायल कस्बा आबाद है। जिसके तीनों और बड़े-बड़े दरवाजों युक्त प्रचीर है।
•मंडरायल दुर्ग करौली से 40 किमी की दूरी पर दक्षिण पूर्व में है।
•पूर्व में मंडरायल अपने बागों लिए प्रसिद्ध था।
•मंडरायल का यह दुर्ग ग्वालियर के पास स्थित था।
•महाराजा कुंवरपाल के वंशज गोकुलदेव के पुत्र अर्जुनपाल ने 1327 में मंडरायल के मक्खन खां को परास्त कर अपने पूर्वजों के राज्य को फिर से प्राप्त करना प्रारंभ किया।
•क्षेत्रीय के अनुसार इस दुर्ग का नामकरण मंडन ऋषि के नाम पर हुआ। जिन्होंने इस पहाड़ी पर कभी तपस्या की ओर बाद में ताल में समाधिस्थ हो गए।
•अर्जुनपाल ने मंडरायल के आसपास रहने वाले मीणों तथा पंवार राजपूतों को परास्त कर राज्य का विस्तार किया। •1348 में कल्याणपुरी नामक नगर बसाया तथा कल्याणजी का मंदिर बनवाया।
•कल्याणपुरी ही बाद में करौली नाम से जानी जाने लगी।
•किले में दो तालाब है तथा कुछ देव मंदिर भी है।
51.मालकोट का दुर्ग :- मेड़ता (नागौर)।
•राजा मालदेव द्वारा निर्मित।
52.तिजारा का दुर्ग :- अलवर।
•निर्माण मेड़ता के राजा मालदेव द्वारा। तिजारा में हजरत गद्दनशाह पीर की मजार है।
•महाभारत काल में त्रिगर्त प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र अब तिजारा हो गया है
प्रसिद्ध :-भृर्तहरि की गुंबद(अलाउद्दीन लोदी ने),हवा बंगला(पास की पहाड़ी पर )
53.बनेड़ा का किला :- भीलवाड़ा में।
•यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो निर्माण से लेकर अभी तक अपने मूल स्वरूप में यथावत स्थित में है।
•अनहड़ पंखगजचार का चित्र यहाँ के 18वीं शताब्दी के जैन मंदिर में प्रवेश द्वार के ऊपर मिलता है
•दुर्ग का निर्माण 1730 ई. में प्रारंभ हुआ
54.कोटकास्ता का किला :- जालौर में।
•इसे ‘नाथों का दुर्ग’ भी कहा जाता है।निर्माण :-जोधपुर महाराजा मानसिंह नें भीमनाथ जी महाराज को कास्तां की जागीर दी जिन्होंने इस सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कराया
55.गुमट का दुर्ग :- बाड़ी (धौलपुर) में।
•निर्माण :-1444 में(उल्लेख एक दरवाजे पर स्थित है फारसी शिलालेख में) | दुर्ग में मुगल बादशाह हुमायू कालीन मस्जिदें है
56.राजगढ़ दुर्ग :- अलवर में।
•निर्माण :-महाराजा प्रताप सिंह ने 18 वीं सदी के अंत में
57.मनोहरथाना दुर्ग :-
•झालावाड़ में। (जल दुर्ग :-परवन एवं काली कोह नदियों के संगम पर स्थित)
•निर्माता :- महाराव भीमसिहं (कोटा)।
58.सोढ़लगढ़ दुर्ग :-
•सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर)
•धान्वन दुर्ग।
•बीकानेर नरेश सरूतसि हं द्वारा 1799 ई. में निर्मित।
59.किलोणगढ़ दुर्ग :-
•बाड़मेर में 1552 ई. में राव भीमोजी द्वारा निर्मित
•गिरि दुर्ग।
60.ऊँटाला का किला :-
•वल्लभगढ़ (उदयपुर) में स्थित दुर्ग।
61.झाइन दुर्ग :- सवाईमाधोपुर।
•उपनाम :-रणथम्भौर की कुंजी।
62.मीठडी दुर्ग :- जयपुर।
63.नवलखाँ दुर्ग :-झालावाड़ में।
•निर्माता :-झाला पथ्वीसि हं ।
64.काकोड़/कनकपुरा दुर्ग :-टोंक में।
65.बोराज का दुर्ग :-जयपुर में।
66.तोहन दुर्ग :-कांकरोली (राजसमन्द) में।
67.टांई का किला :-टांई (झझंनु ) में।
68.केहरीगढ़/किशनगढ़ दुर्ग :-किशनगढ़(अजमेर) में।
•दुर्ग के आंतरिक भाग को ‘जीवरक्खा’ कहते हैं
69.पचेवर का किला :-टोंक में
70. अहनलपुर दुर्ग :-भरतपुर
71. भीकमपुर दुर्ग :-जैसलमेर
72. इन्दरगढ़ :-कोटा–बूँदी
73. मंडोर दुर्ग :-जोधपुर
•निर्माण :-सातवीं शताब्दी के पूर्व (घटियाला शिलालेख एवं जोधपुर शहर के परकोटे के शिलालेख से ज्ञात होता है)
•स्मारक :-राव रणमल के देवल ,राव गांगा एवं चूँड़ा के स्मारक,नाहरदेव की बावड़ी(अंतिम परमार शासक नाहरदेव) स्थित है ।
74. मांडवा का किला — खांडवा
75.कोटडा का किला – बाडमेर
•निर्माण :- किराडू के परमार शासकों ने
•आकार :- जैसलमेर के किले के समान
76.केसरोली दुर्ग :- अलवर
•इतिहासकार इसका संबंध महाभारत कालीन मत्स्य जनपद से जोड़ते हैं(राज्य के सबसे पुराने दुर्गों में शामिल)
•वर्तमान में यह एक हैरिटेज होटल है
77.शहर दुर्ग :-सवाईमाधोपुर
•दुर्ग में देवी सेहरा माता का प्राचीन मंदिर स्थित है
•मिर्जा राजा जयसिंह का प्रमुख सेनापति जगन्नाथ इस दुर्ग के ठाकुर उदयसिंह के पुत्र थे
78.अजबगढ़ का दुर्ग :-अलवर
•निर्माण :-1635 में। गिरी दुर्ग
79.डीग का किला :-भरतपुर
•निर्माण :-जाट शासक बदन सिंह ने 1730 में
•प्रसिद्ध :-सूरजमल का महल,लक्खाबुर्ज
80.कैर का किला
•निर्माण :-महाराजा बदन सिंह ने 1726 में
81.इंदौर का किला :-अलवर
82.भाद्राजून दुर्ग
•अकबर द्वारा 1564 में जोधपुर के दुर्ग को फतह करने के बाद मारवाड़ शासक राव चंद्रसेन यहाँ आया था
83.गढ़ गणेश :-जयपुर
•नाहरगढ़ के सामने की पहाड़ी पर स्थित
84.दांतारामगढ़ :-सीकर
•निर्माण :-गुमानसिंह ने 1744 में
85.खींवसर दुर्ग
•निर्माण :-राव करमसजी ने 1523 के लगभग
86.बागोर दुर्ग :-खेतड़ी झुंझनू
87.पोकरण दुर्ग :-जैसलमेर
•निर्माण :-1550 में जोधपुर शासक राव मालदेव ने
88.बहादुरपुर/बेकुन्टपुर दुर्ग :-करौली
•निर्माण यदुवंशी नागराज(तिवनपाल के पुत्र) ने कराया
89.जमवारामगढ़ दुर्ग :-जयपुर
•राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :-
•जो दुर्ग दुश्मन द्वारा जीते नहीं गये हो, उन्हें बाला किला कहा जाता है।
•पाशीब :-किले की प्राचीर से हमला करने के लिए रेत एवं अन्य वस्तुओं से निर्मित एक ऊँचा चबूतरा।
काग मुखी :- वह दुर्ग जो आगे की ओर बिल्कुल संकरा और पीछे की तरफ फैला हुआ हो । उदाहरण- जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग ।
मिट्टी के दुर्ग :- हनुमानगढ़ का भटनेर दुर्ग तथा भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग मिट्टी से बने हुए हैं ।
जीव रखा :- मुख्य मार्ग से होने वाली आक्रमण को विफल करने वाली रक्षा भित्ति थी ।
कवसीस :- किले के ऊपर एक साथ चार-पाँच घोड़ो के एक साथ चल सकने योग्य चौड़ी प्राचीर पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ये गुमटियाँ बनाई जाती थी ।
जयपुर :- यहाँ सर्वाधिक किले पाए जाते हैं ।
राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध जलदुर्ग कौन सा है?
गागरोन (झालावाड़) :-जल दुर्ग (कालीसिन्ध-आहू नदी के संगम पर)(मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों ) डोड परमार शासकों द्वारा निर्मित। (11वीं सदी में)
सामेलणी (झालावाड़) में स्थित दुर्ग।
अन्य नाम :-धूलरगढ़ / डोडगढ़, गर्गराटपुर,मुस्तफाबाद
राजस्थान में सबसे ऊंचा किला कौन सा है?
चित्तौड़ का किला :-616 मीटर /1850 feet ऊँचे अरावली पर्वत श्रृखला के मेसा पठार पर निर्मित दुर्ग। (गिरि दुर्ग)
भारत का सबसे ऊंचा किला कौन सा है?
महाराष्ट्र में स्थित है प्रबलगढ़ का किला
राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा दुर्ग कौन सा है?
जैसलमेर का सोनारगढ़ किला :-इस दुर्ग का निर्माण शालिवाहन द्वितीय (राव जैसल के पुत्र) ने पूर्ण करवाया।
इस दुर्ग में 99 बुर्ज हैं। (सर्वाधिक बुर्जों वाला दुर्ग)।
गहरे पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण स्वर्णगिरि कहलाती है ( दुर्ग निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है)।
क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग कौन सा है?||राजस्थान का सबसे बड़ा दुर्ग कौन सा है?
चित्तौड़गढ दुर्ग को देश का सबसे बड़ा दुर्ग कहा जाता है। -यह 180 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। निर्माता :-चित्रांगद मौर्य (मौर्य राजा) (प्रसिद्ध ग्रंथ वीर विनोद के अनुसार) (इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद ने सातवीं शताब्दी में करवाया था) ||
और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। बाद में यह चित्तौड़ कहा जाने लगा |
चित्तौड़गढ का किला राज्य के सबसे प्राचीन और प्रमुख किलों में से एक है |
सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट/आवासी दुर्ग||राजस्थान का सबसे बड़ा आवासीय किला कौन सा है?
चित्तौड़गढ